संकट के अवसर पर (Kavita)

May 1952

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मत हो निराश! मत हो निराश!!

तेरे सम्मुख संघर्ष खड़ा।

तू मत घबड़ा! तू मत घबड़ा॥

है कितना साहस शक्ति लिये, यह आती, जाती हुई श्वांस!

मत हो निराश! मत हो निराश!!

लहरों की गति है बड़ी प्रबल।

टूटा-सा भूला-सा सम्बल॥

संकेत पार का कहता है, फिर भी सागर का अट्टहास!

मत हो निराश! मत हो निराश!!

पथ सूना, सूना अन्धकार।

हिम्मत न हार, हिम्मत न हार॥

इस तट के घन-दल से छनकर, आयेगा तुझ तक नव प्रकाश!

मत हो निराश! मत हो निराश!!

(श्रीमती विद्यावती मिश्र)


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