विचारों की अद्भुत शक्ति

August 1952

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(श्री ज्वालाप्रसाद गुप्त, एम. एल.टी. फैजाबाद)

विश्व में शक्ति के जितने भी साधन हैं उनमें विचारों की शक्ति सबसे तीव्र और प्रबल है। विचारों की रचना परमाणुमयी है। ये आकाश में व्याप्त ईथर तत्व के सूक्ष्म कण समूह हैं जिनकी रचना मन के अदृश्य स्तर में होती है। ‘ईथर’ तत्व समग्र विश्व में प्रचुरता से व्याप्त है। इसी माध्यम के अनुसार विचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजे जा सकते हैं। हम दृढ़ इच्छा शक्ति एवं मनोबल द्वारा अपने विचार दूसरे मस्तिष्कों में फेंक सकते हैं। ‘ईथर’ का अदृश्य माध्यम विचार संचालन क्रिया में सबसे बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है। प्रकाश की सूक्ष्म लहरों की तरह विचारों की लहरें भी संचरित होती हैं। प्रत्येक परमाणु दूसरे परमाणु को गति प्रदान करता है, दूसरा तीसरे को, तीसरा चौथे को, इस प्रकार विचार की तरंगें ईथर माध्यम में अमित वेग से चलती हैं।

प्रकाश की गति एक मिनट में लाखों मील की है किन्तु विचार की गति उससे भी अधिक है। चैतन्य वाही होने के कारण उसकी गति अप्रतिहत है। संसार की कोई रुकावट इसका वेग अवरुद्ध नहीं कर सकती। यह एक मानी हुई बात है कि जो वस्तु जितनी ही सूक्ष्म या चेतन होती है उसका बल भी उतना ही अधिक होता है। जल से वाष्प, वाष्प से वायु, वायु से आकाश, आकाश से प्रकाश और प्रकाश से विद्युत में जड़ता कम और चैतन्य अधिक है। इसीलिए एक ही अपेक्षा दूसरा अधिक शक्तिमान है।

जिस यन्त्र द्वारा मन से विचारों को निकाला जाता है वह मस्तिष्क एक प्रकार का बड़ा शक्तिशाली ‘डाइनमो’ है। अतः इसके केन्द्रस्थान में विचार की गति अत्यन्त तीव्र होती है। यह प्रबल वेग से विचारों की लहरें ईथर के वायुमण्डल में फेंकता है अर्थात् विचार से कम्पन और उससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। प्रत्येक विचार एक विशिष्ट प्रकार की लहर उत्पन्न करता है और मनुष्य का मस्तिष्क अपनी सजातीय तरंगों को ग्रहण करता रहता है। जैसे कोई व्यक्ति भयातुर अथवा भयभीत है या क्रोधावेश में है तो सूक्ष्म जगत में फैली हुई भय और क्रोध की तरंगें खिंचकर उसके मस्तिष्क से टकराती हैं, इसके विपरीत यदि कोई स्नेह और सहानुभूति के विचारों में भर रहा है तथा निःशंक है और इन दिशाओं में उसके विचार दृढ़ हैं तो वैसी ही विचार तरंगें उसे स्पर्श करेंगी।

विश्व के समस्त परिवर्तनों के मूल कारण विचार ही हैं प्रत्येक विचार उस नन्हें बीज के समान है जिसमें एक महान् वृक्ष उत्पन्न करने की शक्ति छिपी है। यदि उस बीज को उचित वातावरण मिले तो निश्चय ही वह हमें सामर्थ्यशाली बना सकता है। आध्यात्म शास्त्र का अटल एवं अनुभव सिद्ध सिद्धान्त है कि मनुष्य के जैसे विचार होते हैं, जैसा ही वह नित्य प्रति के जीवन में सोचता, विचारता, ध्यान करता है वैसा ही वह बनता है और उसका भाग्य तथा फल निर्माण होता है और वैसा ही वह दूसरों के बनाने में सहायता करता है। यदि हम जान लें कि हम चित्त में उदय होने वाले प्रत्येक विचार से अपने साथ ही संसार को भी अच्छा या बुरा बना रहे हैं तो हम उस उत्तरदायित्व की कुछ कल्पना कर सकेंगे जो मानव होने के नाते हम पर है।

हम लोग प्रायः समझते हैं कि जब तक हम कोई बुरा कर्म नहीं करते तब तक मन में यदि कोई दूषित विचार आ ही गया तो कोई विशेष हानि नहीं। यह गलत धारणा है। प्रत्येक विचार जो मन में उत्पन्न होता है, बिजली के समान प्रचण्ड शक्ति से पूर्ण है। इसलिए मनुष्य यदि कोई भी क्षुद्र विचार मन में आने देता है तो न केवल वह अपने मन को, दुर्बल करता और बुरे कार्यों की ओर अपने को प्रवृत्त करने का बीज बोता है बल्कि विश्व के प्रत्येक प्राणी के जीवन को विषाक्त करने का भी अपराध करता है। कोई मनुष्य विचारों से एक क्षण भी रिक्त नहीं रह सकता। वह प्रतिदिन अपने मस्तिष्क के चेतना केन्द्र से अगणित विचार तरंगें बाहर भेजता है और ग्रहण भी करता है। इससे आप उस हानि का कुछ अनुमान कर सकते हैं जो बुरे, दीन, दुर्बल, अस्वस्थ और अकल्याण कारक विचार वाला आदमी अपना और समस्त विश्व का करता है। इसी प्रकार उसके विचार अच्छे हुए तो वह अपना तथा दूसरों का कितना कल्याण साधन कर सकता है, इसका अनुमान करना भी कठिन नहीं।

मस्तिष्क की शक्ति से ही हम गिरते और उठते हैं, खड़े होते और चलते हैं। इसी मन्थन कारी यन्त्र की सहायता से विचार मन से निःसृत होते हैं, वास्तव में मन ही विचारों का स्त्रोत है। विचारों की तीव्र शक्ति से ही सब काम होते हैं। जो अपने विचारों के स्रोत को नियन्त्रित कर सकता है वह अपने मनोवेग पर भी शासन कर सकता है। ऐसा व्यक्ति अपने संकल्प से वृद्धावस्था को यौवन में बदल सकता है, रोगी को निरोगी कर सकता है। मन में सदा सद्विचारों को स्थान देने से मनुष्य अपनी विपुल आत्म शक्ति को प्रत्यक्ष कर सकता है। उसमें सोई हुई असीम शक्तियाँ जाग उठती हैं। प्रत्येक उच्च कार्य करने की शक्ति का अनुभव होता है। किसी श्रेष्ठ संकल्प से शरीर के समस्त जीव—कोष्ठक (सेल्स) दृढ़ एवं शक्तिमान होते हैं, धारणाशक्ति सजीव होती है।

शक्ति का अन्तः स्वरूप चेतन और बाह्य रूप गतिमान है। अर्थात् उसमें चैतन्य और गति दोनों हैं। विचार शक्ति संसार को चेतना प्रदान करती और चलाती है। यद्यपि विचार मानव दृष्टि से अदृश्य हैं परन्तु उनकी अद्भुत शक्ति को सबने स्वीकार किया है। अमेरिका और यूरोप के बहुत से डॉक्टरों ने दृढ़ विचारों की संकल्प शक्ति से मानसिक एवं स्नायविक रोगों की चिकित्सा में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है। इस प्रकार की ‘साइको थैरेपी’ या प्राण चिकित्सा का प्रसार वहाँ दिन पर दिन अधिक हो रहा है। जीर्ण रोगों में अपनी मनःशक्ति का प्रभाव रोगों के ऊपर डाल सकते हैं और उसके दुर्बल मन को सबल कर रोग से लड़ने की उसकी शक्ति में वृद्धि करते हैं। यह बहुधा देखा जाता है कि एक आनन्ददायक या शुभ विचार के मन में आते ही चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिल उठता है और भय के कारण वही चेहरा एकदम पीला या निर्जीव पड़ जाता है। शोक समाचार सुनने से भूख बन्द हो जाती है, क्रोध एवं चिड़चिड़ेपन से मुँह का स्वाद बिगड़ जाता है तथा आँतें निर्बल पड़ जाती हैं। इन बातों से यह शिक्षा मिलती है कि शुभ उन्नत और कल्याणकारी विचारों से मानव शरीर अधिक सूक्ष्म एवं निरोग रहता है तथा जीवन युद्ध में सफलता प्राप्त करने की अधिक आशा की जा सकती है।

अतः स्पष्ट है कि विचारों के रूप में कैसी सूक्ष्म शक्तियाँ मनुष्य में भरी पड़ी हैं। इन विचारों को दृढ़ करके, संघटित करके मनुष्य संकल्प बल से अपनी काया पलट सकता है और विश्व को बदल सकता है। इसलिए कहा गया है कि ‘निराशा पाप है’ और ‘आशा तथा विश्वास संजीवन का काम करते हैं। जो सोचता है कि मैं अभागा हूँ, मुझे प्रभु ने भाग्यहीन बनाया है, मेरे भाग्य में दुःख ही लिखा है वह धन और सुविधाएँ पाकर भी दुःखी ही रहेगा। जो अपने को असमर्थ और अभागा मानता है, उसे सौभाग्यशाली बनाने में कोई समर्थ न होगा। स्वयं मनुष्य के सिवाय किसी में यह शक्ति नहीं है कि उसे शान्ति और सुख दे सके। हम जो अन्दर हैं, उसी अनुरूप बाहर भी बनेंगे। यदि हमारा मानस दरिद्र है तो चाहे हमारे चतुर्दिक् ऐश्वर्य का सागर लहराता हो, हम दरिद्र ही रहेंगे।

किसी महात्मा ने सत्य ही कहा है—”मनुष्य जैसा है, अपने विचारों से बना है। स्वतन्त्रता और सुख प्राप्त करना मनुष्य की अपनी इच्छा, अपने संकल्प बल पर है। यदि हमारी आत्म प्रेरणाएँ उच्च और दिव्य होंगी तो हम जीवन में सफल और सुखी होंगे।” अतः हमें चाहिए कि हम सदैव उसी पर विचार करें जिसमें श्रेष्ठता और उच्चता विद्यमान हो। कभी किसी अवाञ्छनीय विचार को अपने पास न फटकने दीजिए। उदासी और हीनता, रोग और दुःख के विचार मन में न आने दीजिए। विश्वास रखिए, आप में पूरी योग्यता है, आप अपने कार्य को अच्छे ढंग से सम्पादन कर सकते हैं, आपका जीवन विजय के लिए है। आप अपने विचारों को दृढ़ रखिए और अपनी महत्वाकाँक्षाओं को मुरझाने न दीजिए। इसी में जीवन की सच्ची सफलता है।


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