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August 1952

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—वाणी की चञ्चलता से बचो, वाणी का संयम रखो वाणी का दुश्चरित्र छोड़ कर वाणी का सदाचरण करो।

—जिसके पास कुछ नहीं है जो अक्रोधी है, व्रती है, सदाचारी है, घृणा रहित है, कमल के पत्ते पर बूँद की तरह जो काम-भोगों से अतृप्त है, वही ब्राह्मण है जो गम्भीर प्रज्ञावाला है जो असंग्रही है, वह ब्राह्मण है।

—जो इच्छा रहित है, अशक्ति रहित है संशय रहित है जिसने गाढे अमृत को पी लिया है वह ब्राह्मण, है। जो पुण्य-पाप से परे है, शोक रहित है, निर्मल है, शुद्ध है, वही ब्राह्मण है।


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