तेरा स्वरूप (Kavita)

August 1952

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देख रहा तू जो कुछ वह तेरे भावों की छाया!

तुझ में ज्योति—इसी से तेरा सूरज चमका करता,

तुझ में शान्ति—इसी से तो शशि शीतलता है भरता,

यह कोमल आकर्षण—तेरे भव्य हृदय की माया!

देख रहा तू जो कुछ वह तेरे भावों की छाया!!

हिमगिरि तुँग विशाल इसी से-झुका न तेरा मस्तक,

सरिताएँ गतिवान-चरण की गति न सकी तेरी रुक,

नव घन वन तूने जग-मरुथल पर जीवन बरसाया!

देख रहा तू जो कुछ वह तेरे भावों की छाया!!

तेरी एक श्वांस में अंकित वासुदेव की गीता,

तेरा ही विश्वास राम, तेरी ही श्रद्धा सीता,

तू क्या यह सब भेद अभी तक जान नहीं है पाया?

देख रहा तू जो कुछ वह तेरे भावों की छाया!!

(श्रीमती विद्यावती मिश्र)


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