जो अलज्जा के काम में लज्जा करते हैं और लज्जा के काम में लज्जा नहीं करते, जो भय रहित काम में भय देखते हैं और भय के काम में निर्भय रहते हैं, और जो अदोष में दोष बुद्धि रखते हैं और दोष में अदोष रखते हैं वे झूठी धारणा वाले जीव दुर्गति को प्राप्त होते हैं।
-धम्मपद
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राग के समान आग नहीं, द्वेष के समान भूत पिशाच नहीं, मोह के समान जल नहीं और तृष्णा के समान नदी नहीं-
महात्मा बुद्ध