(श्री नीलरतन मुखोपाध्याय बी.ए.)
ईसा और बुद्ध के लिये कहा जाता है कि उनके कर स्पर्श से ही रोगी भला चंगा हो जाता था। सुकरात पर अभियोग लगाया गया था कि वह युवकों पर जादू चलाकर वशीभूत करके उन्हें अपने मत में परिवर्तित कर लेता था। ऐसे महापुरुषों का उल्लेख रास्पुटिन और मेस्मर जैसे व्यक्तियों के साथ करना नितान्त अनुचित है। पर इतिहास साक्षी है। कि किस प्रकार का सम्मोहन प्रसिद्ध पापी संन्यासी रास्पुटिन के नेत्रों में था। दृष्टि डालते ही व्यक्ति किसी भी नर-नारी को वशीभूत कर लेता था।
ऐसे व्यक्तियों को किसी भी देश में कोई अभाव नहीं है जो किसी की मृत्यु तिथि तक बता देते हैं और जब ये भविष्य वाणियाँ सच निकल जाती है। तब हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता। मेस्मर और रास्पुटिन जैसे लोग आज भी पहेली-से बने हुए है। राज्यक्रान्ति के पहले जब मेस्मर ने अपने अलौकिक चमत्कार दिखाने शुरू किये तब सभी ने उनकी कटु आलोचना ही नहीं, नितान्त भर्त्सना भी की। लेकिन कितने ही लोगों ने यह स्वीकार किया कि उसके स्पर्श से ही वे ठीक हुए। ऐसी रहस्यमयी शक्तियों के प्रति अच्छे लोगों की सदा ही इसलिये शंका पर्ण दृष्टि रही, कि कहीं इस प्रकार की दैवी शक्ति का उपयोग शैतानी शक्ति के ही रूप में न होने लगे ऐसी आशंका के कारण भी यथेष्ट थे। कितने ही पतित वृत्ति वालों ने ऐसी शक्ति का अपने स्वार्थ साधन के लिये उपयोग किया और कितनों ने सम्पत्ति और प्रभुता के लिये ही नहीं। बात ऐसे लोगों की है जो मेस्मर की प्रणाली का दुरुपयोग अपने स्वार्थों के लिये करे। रास्पुटिन की शक्ति को कोई इन्कार नहीं कर सकता। उसका प्रभाव आधुनिक युग में सबसे अधिक व अद्भुत कहा जायगा। रूस के जार और उसके समस्त परिवार पर राजकुमारी की बीमारी के पश्चात् ही रास्पुटिन का सिक्का जमा तब से उसने ऐसे-ऐसे करिश्मे दिखाये कि लोगों को चकित रह जाना पड़ता है। किन्तु उसकी इस शक्ति की सराहना करते हुए इसके दुरुपयोग इसके उपयोग के साधन और साध्य की सरहना कौन कर सकता है? रास्पुटिन आज निंदा का विषय ही बना हुआ है। इसी प्रकार शैतानी की लीलाओं के अभियोग में कितने ही सम्मोहक दंडनीय ठहराये जा चुके है। और कितने ही फाँसी पर लटकाये और कितने ही जीते जी जलाये जा चुके हैं।
इसलिये वैज्ञानिकों ने सम्मोहन विद्या के जानकारों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह रखा है कि वस्तुतः इसकी कोई उपयोगिता है या नहीं। इसके अस्तित्व के सम्बन्ध में प्रश्न गौण हो चला है, प्रधान प्रश्न अब इसकी उपयोगिता का है सम्मोहकों ने अब अपनी विद्या पर वैज्ञानिक दृष्टि डाली है। एक समय था जब लम्बे-लम्बे लबादों में घूरती हुई अपलक आँखों द्वारा सम्मोहक किसी को अचेत करके अथवा स्वेच्छापूर्वक अपनी इच्छा शक्ति द्वारा सम्मोहित को संचालित करके ही अपने चमत्कारों की इतिश्री समझ लेते थे। लेकिन आज जब नैतिकता का मूल्य भी सामाजिक और मानवीय कल्याण साधन की कसौटी पर कसा जाने लगा है तब सम्मोहन विद्या की उपयोगिता भी सम्मोहक को प्रमाणित करनी पड़ेगी और सम्मोहन इस स्थिति से अवगत हो चला है।
लन्दन के अलेज्ड्रा पैलेस में उस दिन एक नये सम्मोहक कैसन ने अपने चमत्कार से सबको चकित कर दिया और अखबारों में उसकी कहानियों को पढ़ कर लोग दांतों तले उंगली दबाने लगे। 24 वर्ष के इस युवक की वेश-भूषा बिल्कुल साधारण-हमारी आपकी-सी किन्तु अपनी तीक्ष्ण अन्तर्भेदनी दृष्टि से, अपने स्पर्श से कैसन अलौकिक चमत्कार कर दिखाता है। जिस समय यह युवक आपसे जो कुछ भी करने के लिये कहेगा। आप इन्कार नहीं कर सकते। स्वेच्छापूर्वक यह आपको चेतनाहीन करके विभिन्न लोकों का सफर करायेगा। लेकिन इसे सर्वथा चेतना हीन स्थिति में ही नहीं कह सकते। एक 33 वर्षीय महिला को इतने विभिन्न वर्षों में ले जाकर उससे एक बार पाँच वर्ष की अवस्था के अवसरों में, फिर 6 फिर 14 और अन्त में वर्तमान अवस्था के अक्षरों में हस्ताक्षर कराये और बाद को तुलना करके देखा गया कि हस्ताक्षर वास्तविक वय के असली हस्ताक्षरों के समान ही हैं।
आधुनिक दृष्टि से कैसन ने सम्मोहन विद्या का अध्ययन किया है। उसका दावा है कि कितने ही रोगों में सम्मोहन का उपयोग किया जा सकता है चीर-फाड़ की अवस्था में सम्मोहन द्वारा रोगी को अचेत किया जा सकता है और इस स्थिति में चीर-फाड़ रोगी महसूस नहीं कर सकता। अनिद्रा के रोग का इलाज भी इससे सहज साध्य हो सकता है। आगस्ट फोरेल नामक एक दूसरे सम्मोहक ने तो म्यूरिच के पागल खाने में काम करने वालों पर इसके प्रयोग कर भी दिखाये हैं। पागल खाने के शोरगुल से परेशान कर्मचारियों पर वह सोने के समय ऐसा सम्मोहन डाल दिया करता है कि उसके प्रभाव में वह गाढ़ निद्रा में निमग्न हो जाते हैं और फिर चाहे जितना शोर गुल हो निर्धारित समय से पहले उनकी नींद में बाधा नहीं पड़ती।
आपरेशन के लिये सम्मोहन का उपयोग 1840 से ही किया जाने लगा था, किन्तु क्लोरो फार्म के आविष्कार के पश्चात इसका त्याग किया जाने लगा। इसके बाद पुनः प्रथम महायुद्ध पश्चात इसका प्रयोग होने लगा। सम्मोहन द्वारा चिकित्सा प्रणाली का एक बड़ा दोष यह है कि इससे रोग का निवारण तो कभी कभी अद्भुत ढंग से हो जाता है किन्तु रोग की न तो वास्तविक जानकारी हो पाती है न तो इस बात का ही विश्वास हो पाता है कि रोग का आमूल निराकरण हो सका या नहीं। फिर भी स्नायु सम्बन्धी रोगों के इलाज के लिये सम्मोहन प्रभावशाली प्रमाणित हुआ है।
सम्मोहन विद्या की वास्तविकता के सम्बन्ध में निश्चयपूर्वक कुछ कहना कठिन है, किन्तु इसका आधार मनोवैज्ञानिक है और मानव की इच्छा को प्रभावित करके स्वेच्छानुसार उसका संचालन करने की क्रिया मनोविज्ञान और मनस्त्व के सिद्धान्त के प्रतिकूल नहीं बतायी जा सकती। इसकी उपयोगिता अथवा अवाँछनीयता का प्रश्न भिन्न है विषमारात्मक है किन्तु ‘विषस्य विषमौषधम्’ के सिद्धान्तानुसार अनेक घातक रोगों की चिकित्सा विषौधियों द्वारा ही होती है। इसलिये सम्मोहन विद्या का सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों ही सम्भव है। इतना निश्चित है कि सम्मोहन विद्या कोरी विद्या कोरी विडम्बना नहीं है। इसका आधार मनोवैज्ञानिक है। इसका केन्द्र शक्ति और इसका साधन स्नायविक प्रणाली है।