मधु-संचय

August 1951

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(संकलन कर्ता श्री दाऊ गंगा प्रसाद जी अग्रवाल, आरंग)

-चलो-चलो की पुकार तो सभी करते हैं, परन्तु पहुँचता कोई ही है-क्योंकि इस मार्ग में “कनक” और “कामिनी” दो बड़ी घाटियाँ हैं।

-तप करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, दान देने से से ऐश्वर्य मिलते हैं, ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है-और तीर्थ स्नान से पाप नष्ट होते हैं।

-ऊँची जाति का अहंकार कोई न करे-क्योंकि मालिक के दरबार में केवल भक्ति ही प्यारी है।

-चित्त में शुभ विचारों को भरो, शुभ विचारों के साथ खेल करो, उसके साथ जीवन बिताओ।

-अपनी बढ़ती चाहने वाले को कभी अभिमान न करना चाहिये।

-जगत के विषय प्रपंच में उलझे जीव जगत के केन्द्र में कोल्हू के बैल की तरह चक्कर लगाते ही रह जाते हैं। मनुष्य केवल सदाचार के प्रभाव से दीर्घायु, धनवान और दोनों लोकों में यशस्वी होते हैं।

-घाव को बार-बार खोलकर देखने-कुरेदने से घाव अच्छा नहीं होता। मानव जीवन में भूल तो होती ही है परन्तु भूल हो जाने के पश्चात् फिर भूल करना पाप है।

-याद रखना चाहिए कि दूसरों का भला करने वालों का परिणाम में कभी बुरा हो ही नहीं सकता।

-आप चाहते हैं कि आपको बीमारी न सतावें तो स्वास्थ्य के नियमों पर दृढ़ता पूर्वक चलना प्रारम्भ कर दीजिए।

-आप चाहते हैं कि बहुत से मित्र हो, तो अपना स्वभाव आकर्षक बनाइये।

-आप चाहते हैं कि प्रतिष्ठा प्राप्त हो, तो प्रतिष्ठा के योग्य कार्य कीजिए।

-आप चाहते हो कि ऊँचा पद प्राप्त हो, तो उनके योग्य गुणों को एकत्रित कीजिए।


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