वशीकरण की मनोवैज्ञानिक कुँजी

August 1951

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(श्री राम खेलावन जी चौधरी बी.ए.एल.टी)

अमेरिकन विद्वान डेला कार्नेगी ने मनोवैज्ञानिक आधार पर खोज करते हुए कुछ ऐसे सिद्धान्त तैयार किये हैं, जिनके अनुसार चलने से मनुष्य दूसरों का प्रेमपात्र, स्नेह भाजन और प्रिय बन सकता है। उन सिद्धान्तों का साराँश निम्नलिखित हैं-

1-प्रत्येक व्यक्ति की कुछ न कुछ कठिनाइयाँ और समस्यायें ऐसी होती हैं, जिनके कारण वह चैन से बैठ नहीं सकता। कभी-कभी वह बिना किसी की सहायता के हल नहीं कर सकता, साथ ही वह उन्हें और उनके भेद को हर एक से नहीं कह सकता। यदि कोई भी व्यक्ति ऐसा मिल जाय, जो उनके भेदों को छिपा सके और केवल उनकी कठिनाइयों में रुचि लेकर उससे सहानुभूति प्रकट करे - पर यह सहानुभूति सच्ची होनी चाहिए, तो वह बड़ी आसानी से उसका विश्वास पात्र और स्नेह भाजन बन सकता है। साथ ही मौखिक सहानुभूति काफी नहीं है कभी-कभी चालाक लोग इसका सहारा लेकर सस्ता प्रेम और विश्वास प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे के हृदय पर स्थायी विजय तभी पाई जा सकती हैं जब मौका पड़ने पर उसका कुछ क्रियात्मक रूप भी देखने को मिले।

2-संसार में प्रायः तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं। एक तो वे हैं, जो दूसरों का हित करते हैं, अपने लाभ हानि की उन्हें परवाह नहीं होती। ऐसे उच्च कोटि के लोग हजारों में एक होते हैं। दूसरे प्रकार के वे लोग हैं, जो परले सिरे के स्वार्थी होते है। यह लोग मौका पड़ने पर गधे को भी बाप बना लेते हैं और काम बन जाने पर तोते की तरह आँख फेर लेते हैं। इनकी भी संख्या कम है। तीसरे प्रकार के व्यक्ति वे हैं जो अपने हित के बदले में दूसरों का हित करते हैं और बुराई के बदले बुराई। इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। ऐसे लोगों को वश में करने के लिए पहले उनके हितों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिये। उनसे संपर्क रखते हुये, उनसे बात करते हुये या किसी प्रकार का सम्बन्ध रखते हुये, उनके हितों को धक्का न पहुँचने देना चाहिये। उनकी पूर्ति में यथा-शक्ति सहायता करने से सभी लोग आसानी से वश में आते हैं।

3-दूसरों से बातचीत करते समय खुद बोलने की अपेक्षा, चुप रह कर, पूरी संगति और सन्तोष के साथ, अभ्यागत की बात सुनना, उसके मन पर अधिकार जमा लेने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। याद रखिये, आप के पास जो भी आता है, किसी न किसी रूप से वह कुछ प्राप्त करने आता है। वह आपकी सहानुभूति चाहता है, जिसमें नहाकर वह अपने दुख-दर्द की थकावट को दूर करना चाहता है। आपसे बातें करके उसके मन का भार हल्का पड़ जाता है। यानी आप उसकी चेष्टाओं और आकृति का ध्यान से अध्ययन कीजिए तो आपको पता चल जायगा कि यदि आपने उसकी बात को ध्यान से सुना है, उसकी योजना की दाद दी है, तो वह दूने उत्साह से बात करेगा और पूरा वार्तालाप समाप्त होने पर, आपकी मन नहीं मन प्रशंसा करता हुआ जायेगा। यदि आप उदास भाव से उसकी बात सुनेंगे, तो उसे पता चल जायगा, क्योंकि मनुष्य मनुष्य के ‘हृदय’ को परखने में प्राकृतिक रूप से पटु होता है। यदि आप स्वयं अपनी राम कहानी कहने में लग जाँयगे, तो दूसरे आये हुये मनुष्य को निराशा होगी और आप उसके मन पर कभी भी अधिकार न कर सकेंगे। जहाँ तक हो आप उसे अधिक से अधिक बात करने के लिये उत्साहित करें।

4-हर एक व्यक्ति जब मिलता है, चाहे वह थोड़ी देर के लिये या जीवन में एक ही बार मिले, तो वह आशा करता है कि दूसरा व्यक्ति उसे याद रक्खे। दुबारा मिलने पर यदि वह अपने उस पूर्व परिचित को पहचान लेता है, तो उस परिचित व्यक्ति को एक अपूर्व सुख मिलता है और यदि कहीं उसका नाम दूसरे ने याद रखा है, तो उसे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि उसकी याद सच्चे दिल से रक्खी गई है। इसलिये आप अपने मित्रों और परिचितों का नाम अवश्य याद रखें।

5. तुलसीदासजी ने एक स्थल पर लिखा हैः-

आवत ही हर्ष नहीं नैन नहीं स्नेह,

तुलसी तहाँ न जाइये कंचन बरसे मेह।

यदि तुम किसी मित्र या सम्बन्धी के घर जाओ और यह समझ लो तुम्हारे आने से उसकी आँखों में स्नेह नहीं उमड़ आया, उसका हृदय उल्लास से नहीं भर गया, तो ऐसी जगह भूल कर भी न जाओ, चाहे वहाँ सोना ही क्यों न बरसे। जो भी आदमी आपके पास आता है, वह आपका प्रेम प्राप्त करना चाहता है। जब वह आपसे मिलता है, तब वह आपके चेहरे और आँखों को देखकर फौरन पहचान लेता है कि आप उसके आने से प्रसन्न हैं या अप्रसन्न, इसलिये आप उसके आने पर प्रसन्नता अवश्य प्रकट कीजिये। प्रसन्नता प्रकट करने का साधन है मुस्कुराना। सबसे मुस्कुरा कर मिलिये, आपके चेहरे पर एक आकर्षक शक्ति उत्पन्न हो जायेगी, पर ध्यान रखिये, यह मुस्कुराहट बनावटी नहीं होनी चाहिये।

6-हर एक मनुष्य को आत्म सम्मान प्रिय होता है, वह अपने महत्व को जाने नहीं देना चाहता, इसलिये दूसरों का आदर करना आवश्यक है-पर ऊँच हो या नीच, अमीर हो या गरीब, सबको अपनी कला, कुशलता की किसी न किसी चीज पर नाज होता है। बस उसी चीज का यदि आपने आदर किया, तो आपके आत्म सम्मान की परख मालूम हो गई। आत्म सम्मान का आदर करने से दूसरे वश में हो जाते हैं।


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