गायत्री प्रसार की एक व्यापक योजना

August 1951

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री राम शर्मा आचार्य)

हमारे जीवन का अधिकाँश भाग गायत्री माता की गोदी में व्यतीत हुआ है। इस महामंत्र के सम्बन्ध में हजारों आर्ष ग्रन्थों का अनुसंधान करके यह पाया है कि आध्यात्मिक साधनाओं में गायत्री से बड़ी साधना दूसरी नहीं। महात्मा, तपस्वी और सिद्ध पुरुषों के चरणों में बैठकर उनका मन्तव्य भी यही पाया है कि गृही और विरागी दोनों ही प्रकार के योगी गायत्री द्वारा जो शान्ति पाते हैं, वह अन्य मार्ग से नहीं। अनेकों साधारण साधकों को छुटपुट साधनाओं से जो आत्मिक और साँसारिक लाभ प्राप्त करते अपनी आंखों से देखा है, उससे भी यही निष्कर्ष निकला है कि गायत्री सर्व शक्तिमान है। वह वस्तुतः भूलोक की कामधेनु है। दार्शनिकों, धर्मज्ञों और तत्व दर्शियों का मत है कि गायत्री के अक्षरों में छिपी हुई शिक्षाएं इतनी सर्वांगपूर्ण हैं कि उनके आधार पर संसार की समस्त उलझी हुई समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त हमें व्यक्तिगत रूप से जो अनुभव हुए हैं, उनने हमारी श्रद्धा को असंख्य गुनी बढ़ा दिया है। अब हमारा सुनिश्चित विश्वास है कि गायत्री साधना करने वाले व्यक्ति का श्रम और समय कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकता, उसे आशा जनक सत्परिणाम प्राप्त होकर रहते हैं।

इन निश्चयों पर पहुँचने के उपरान्त हमारे लिए दो मार्ग रह जाते हैं। 1. एकान्त उपासना में प्रवृत्त हो जाया जाय 2. इस महाशक्ति की महत्ता का व्यापक प्रचार करके अनेक आत्माओं को लाभान्वित किया जाय। इन दो विकल्पों के सम्बन्ध में बहुत दिनों तक विचार करते रहने के उपरान्त माता की प्रेरणा यही प्राप्त हुई है कि दूसरे मार्ग को अपनाया जाय। ब्रह्मदान एवं ज्ञान यज्ञ भी उतना ही महान् है, जितना कि जप, तप, ध्यान और साधन। अपने अनेक पुत्रों को ब्रह्म ज्ञान का अमृत बाँटते देखकर माता उतनी ही संतुष्ट हो सकती है, जितना कि कठोर तपश्चर्याओं की श्रद्धाँजलि पाकर प्रसन्न होती है। अतएव हमारा भावी कार्यक्रम प्रधानतया गायत्री प्रचार होगा।

गायत्री महिमा प्रसार के कार्यक्रम का प्रारंभ किया जा रहा है, जिसकी योजना इस प्रकार है-

1. गायत्री में सन्निहित मानव धर्म के महान सिद्धान्तों का व्यापक प्रसार किया जाय, जिससे मनुष्य अपने भूले हुए धर्म कर्तव्यों को अपना कर जीवन की अनेक उलझी गुत्थियों को सुलझा सके।

2. गायत्री प्रसार करके मनुष्य का मनोवैज्ञानिक आत्म निर्माण किया जाय, जिससे वह संयम, सदाचार, सद्भाव, शिष्टाचार, सेवा, सहयोग आदि सद्गुणों को बढ़ाता हुआ जीवन को सुखी और समृद्ध बना सके।

3. गायत्री साधना और तपश्चर्याओं द्वारा उन गुप्त आत्मिक शक्तियों का विकास किया जाय, जो मनुष्य को महान बनाती हैं, अनेक सिद्धियों का द्वार खोलती हैं और परमात्मा के समीप ले पहुँचती है।

इन तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य-प्रणाली इस प्रकार निर्धारित की गई है -

1. गायत्री साहित्य का अधिकाधिक प्रचार किया जाय, जिससे लोगों की जानकारी इस सम्बन्ध में बढ़े।

2. गायत्री जप, व्रत, साधन, अनुष्ठान, यज्ञ, पुरश्चरण, तप, आदि के अनेक आयोजन किये जायें।

3. एक ऐसी केन्द्रीय गायत्री तपोभूमि मथुरा में हो, जहाँ गायत्री के गूढ़ तत्वों का अध्ययन, एवं विशिष्ठ साधनाओं का साधन जिज्ञासु लोग कर सकें। साथ ही इस केन्द्र पर विद्यालय, चिकित्सालय, पुस्तकालय आदि सेवा संस्थाएं भी रहें। इस केन्द्रीय तीर्थ में एक गायत्री मन्दिर भी हो।

इस सब कार्यों को चलने के लिए एक अ. भ. गायत्री संस्था की स्थापना की गई है, जो उपरोक्त सब कार्यों का संचालन करेगी। उपरोक्त योजना को कार्यान्वित करने में हमने अब अपना अधिकाँश समय देना निश्चय किया है।

केन्द्रीय तीर्थ निर्माण सम्बन्धी योजना बड़ी है। यह धीरे धीरे पूरी होगी, पर अभी तुरन्त जो कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है, वह है - “गायत्री भक्तों का संगठन”। इस संगठन में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति “गायत्री संस्था के सदस्य” समझे जायेंगे। सदस्यता की कोई फीस नहीं होगी, पर एक उत्तरदायित्व हर सदस्य को अनिवार्य रूप में पूरा करना पड़ेगा। वह यह है कि - वह अधिकाधिक लोगों को गायत्री की समुचित जानकारी करावें। इस कार्य की पूर्ति के लिए उसे अपना एक छोटा ‘गायत्री पुस्तकालय’ रखना पड़ेगा जिसमें पूरा गायत्री साहित्य रहे। इस साहित्य का वह बार 2 स्वयं अध्ययन करता रहेगा, ताकि हर बार पढ़ने में उसे नये-नये रहस्य समझ में आते रहें। साथ ही वह इन पुस्तकों को धार्मिक प्रवृत्ति के दूसरे लोगों को भी पढ़ावेगा, ताकि वे भी इस विद्या की समुचित जानकारी प्राप्त कर सकें। अधूरी जानकारी वाले ‘ले भगू’ साधक कभी सफल नहीं होते। जिसे समुचित लाभ उठाना है, उसके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि गायत्री विद्या कि पूरी पूरी जानकारी प्राप्त करे।

अखण्ड ज्योति ने जो गायत्री साहित्य छापा है, उससे एक अच्छा गायत्री पुस्तकालय बन सकता है। बीस रुपये से भी कम की लागत में ब्रह्म विद्या का एक महत्व पूर्ण भंडार जमा कर लेना किसी भी गायत्री प्रेमी के लिए कठिन नहीं हो सकता। कई साधक मिल कर भी एक पुस्तकालय स्थापित कर सकते हैं।

यह निश्चय किया गया है कि पुस्तकों से जो कुछ भी लाभ होगा, उसकी पाई-पाई गायत्री संस्था के कार्य में व्यय होगी। उस लाभ की एक पाई भी व्यक्तिगत खर्च में न लाई जायगी। इस प्रकार संस्था के महान उद्देश्यों और विशाल कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए एक मात्र साधन, गायत्री साहित्य का लाभाँश ही है। अतएव गायत्री संस्था के सदस्यों को चाहे धर्म प्रचार के रूप में, चाहे अपनी जानकारी पूर्ण करने के रूप में, चाहे अपने यहाँ गायत्री पुस्तकालय स्थापित करने के पुण्य रूप में, चाहे अ.भा. संस्था की सहायता के रूप में यह आवश्यक है कि वे अपने पास तो पूर्ण गायत्री साहित्य रखें ही, साथ ही जहाँ तक हो सके अन्य लोगों को भी इस साहित्य को मँगाने के लिए उत्साहित करें। गायत्री संस्था के सदस्यों का यह अनिवार्य कर्तव्य है। जो सज्जन इस अ.भा. संगठन में सम्मिलित होंगे, उनमें आत्मोन्नति के लिए विशेष रूप से सहयोग और पथ प्रदर्शन किया जायगा।

इस वर्ष सदस्यों की संख्या बढ़ाकर सुदृढ़ संगठन बनाना प्रधान कार्यक्रम है। हम चाहते हैं कि कम से कम एक हजार गायत्री पुस्तकालय देश के कौने कौने में स्थापित हो जायं, जहाँ से निरन्तर गायत्री प्रचार होता रहे। यह पुस्तकालय, केन्द्रीय संस्था की शाखाओं के रूप में काम करेंगे। इसके अतिरिक्त व्यापक रूप से अधिकाधिक व्यक्तियों को गायत्री की उपयुक्त साधनाएं करके आत्मकल्याण की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जायगा। केन्द्रीय तीर्थ मथुरा में भी स्थापित करने के लिए जितना कुछ प्रयत्न बन पड़ेगा, किया जायगा। आशा है कि माता की कृपा से वह भी पूरा हो जायगा और इस महान् तत्व ज्ञान की वास्तविक शोध करने वालों के लिए एक उत्तम तपोभूमि उपलब्ध होगी।

हमारा गायत्री प्रेमी से आग्रह पूर्वक अनुरोध है कि वे गायत्री संस्था के सदस्य बनकर एक महत्व पूर्ण संगठन के अंग बनें। साथ में सदस्यता का फार्म भेजा जा रहा है। इस भराने के साथ साथ जो गायत्री पुस्तकें आपके पास न हों उन्हें मँगाने का आदेश भी भेजें। जो सज्जन गायत्री साहित्य का पूरा सैट मँगाकर अपने यहाँ पुस्तकालय स्थापित करेंगे, उनके नाम सधन्यवाद अखंड-ज्योति के गायत्री चर्चा स्तंभ में प्रकाशित होते रहेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118