घर बैठे अ॰ भा॰ गायत्री साधक सम्मेलन देखने का स्वर्ण सुयोग
गायत्री महामंत्र में सद्बुद्धि उत्पन्न करने की अद्भुत शक्ति है उसके 24 अक्षरों में भरी हुई अमृतोपम शिक्षाएँ ऐसी हैं जिनका थोड़ा सा भाग भी हृदयंगम कर लिया जाय तो अनेक उलझने और कठिनाइयों दूर होकर जीवन सात्विकता, प्रसन्नता एवं शाँति से भरने लगता है, इसके अतिरिक्त इस रहस्यमय आध्यात्मिक साधन विद्या के आधार पर ऐसी गुप्त शक्ति प्राप्त होती है जो आन्तरिक क्षेत्र के कल-पुरजों को बदल कर मनोवृत्ति में आश्चर्यजनक सतोगुणी परिवर्तन ला देती है। गायत्री की शिक्षा और साधना के आधार पर मनुष्य को जो विशेषताएँ एवं योग्यताएँ प्राप्त होती हैं उनके कारण उसकी जीवन यात्रा तेजी से आनन्द एवं कल्याण की ओर बढ़ती है।
उपरोक्त पंक्तियों में बताये हुए तथ्य को अति प्राचीन काल के ऋषियों से लेकर अब तक के सामान्य साधकों तक समान रूप से सत्य अनुभव करते आ रहे हैं। अपने दीर्घकालीन अध्ययन, अन्वेषण और तप के आधार पर हमारा भी यही अटूट विश्वास है कि गायत्री उपासना करने वाला कभी उसके सत्परिणामों से वंचित नहीं रह सकता, सत्पुरुषों द्वारा विविध स्थानों पर विविध विधियों से जो गायत्री उपासनाएँ की गई है उनके अनुभव का निचोड़ भी यही है कि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती। सद्बुद्धि के रूप में, सद्गुणों के रूप में, आत्मबल के रूप में एवं दैवी सहायता के रूप में किसी न किसी प्रकार उसका सत्परिणाम अवश्य प्राप्त होता है।
ऐसा विचार किया गया है कि गायत्री जयंती ज्येष्ठ सुदी 10 गंगा दशहरा के उपलक्ष में प्रति वर्ष अखण्ड ज्योति का एक गायत्री अंक निकाला जाया करे। जिसमें उपासकों के अनुभवों का निचोड़ रहा करे। साधक एक दूसरे के अनुभवों साधन विधानों, विचारों, सलाहों से लाभ लेकर अपने मार्ग को बहुत कुछ सरल कर सकते हैं, भूलों को जान सकते हैं तथा इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली अपनी अनेक शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। यह विशेषाँक एक प्रकार से साधकों का आपसी विचार विनिमय या सत्संग सम्मेलन होगा। इस विशेषाँक से वही प्रयोजन सिद्ध होगा जो अखिल भारत गायत्री साधक सम्मेलन में सम्मिलित होने से हो सकता है।
ता॰ 1 जुलाई, 1951 अंक गायत्री अंक होगा। इसमें अपने लेख, अनुभव विचार अन्वेषण भेजने के लिए हम गायत्री के साधकों को साग्रह आमन्त्रित करते हैं। अनाधिकारी लोगों से अध्यात्मिक अनुभव छिपाना आवश्यक होता है, परन्तु अखण्ड-ज्योति का यह विशेषाँक मुख्यतः गायत्री के अनन्य प्रेमियों, श्रद्धालुओं एवं उपासकों के ही पास पहुँचेगा इसलिये उनसे अपनी गुह्य अनुभूतियाँ भी नहीं छिपाई जानी चाहिये। कुपात्रों से गुह्य तत्वों को प्रकट करना जिस प्रकार निषिद्ध है वैसे ही सत्पात्रों से उन्हें छिपाने में भी एक प्रकार से कपट करने का पाप होता है। गायत्री साधक बिना संकोच के अपने लेख भेजें।
लेखों की पृष्ठ भूमि इन प्रश्नों के आधार पर होनी चाहिये (1) आपकी गायत्री साधना में प्रवृत्ति क्यों हुई? (2) अन्य साधनाओं की अपेक्षा आप गायत्री को महत्व क्यों देते हैं? (3) आपको इस साधना द्वारा अपने गुण, कर्म, स्वभावों में क्या अन्तर हुआ प्रतीत होता है। (4) क्या आपको किसी कष्ट का निवारण या सौभाग्य का उदय गायत्री द्वारा हुआ? यदि हुआ तो इस बात का क्या प्रमाण है कि उसका कारण गायत्री ही है (5) आपकी गायत्री साधना किस विधि से होती है। (6) अन्य गायत्री उपासकों के अनुभवों एवं सफलताओं के सम्बन्ध में जो आपको जानकारी हो उसे लिखें (7) गायत्री के सम्बन्ध में भ्रमों का निवारण आदि।
लेख अप्रैल मास में आ जाने चाहिये। ताकि उन्हें व्यवस्थित करने में सुविधा रहे। लेखकों से अपने आधे शरीर की फोटो भेजने की भी प्रार्थना है।
-व्यवस्थापक-’अखण्ड ज्योति’ मथुरा।