अण्डे खाना, स्वास्थ्य का नाश करना है

April 1951

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आजकल अनेक देशी और विदेशी सज्जन अण्डे खाने की बड़ी प्रशंसा किया करते हैं, उनकी समझ में अण्डे के समान दूसरा कोई भी शरीर को पोषण करने वाला पदार्थ नहीं है। यही नहीं वे अण्डे को निर्दोष और शुद्ध खाद्य भी बतलाते हैं बहुत से व्यक्ति तो अण्डे को फल या फल की उपमा दिया करते हैं, पर वास्तव में अण्डा क्या चीज है इस बारे में विलायती डाक्टरों के विचार ही यहाँ दे रहे हैं।

आजकल पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध से चौंधियाए हुए लोग कहा करते हैं कि दूध से अण्डा अधिक पौष्टिक है। ऐसा कह कर वे अण्डों का महत्व गाया करते हैं। आप खाते हैं और दूसरों को खाने को सलाह दिया करते हैं डॉक्टर लोग भी अपने रोगियों को आवश्यकता होने पर अण्डे का गुणगान करके उन्हें खाने की सलाह दिया करते हैं। अण्डे का महत्व जितना गाया जाता है उतना उसका महत्व नहीं है। एक हिसाब से तो अण्डा बहुत हानिकारक पदार्थ है पश्चिमी विद्वान डाक्टरों ने खोज करके अण्डे के सम्बंध में जो व्यवस्था दी है वह अंडे के प्रत्येक प्रेमी को जान लेना आवश्यक है।

पेरिस के मेडिकल विभाग क प्रोफेसर लाइनों सियर ने खोज कर लिखा है कि मुर्गी के माँस और अण्डे में एक प्रकार की विषैली अल्वूमन पायी जाती है जो जिगर और अन्तड़ियों में खराबी पैदा करती है और बहुत ही हानिकारक है। अण्डे के भीतर जो जरदी होती है उनमें नमक, चूना, लोहा और विटामिन सभी पदार्थ रहते हैं। यह पदार्थ बच्चे के पोषण के लिये भगवान ने भर दिये हैं। बहुत लोगों ने यह समझ लिया है कि यह चीजें हमारे खाने के लिये ही हैं। परन्तु यह उनकी भूल है।

अण्डे में जो प्रोटीन होती है वह दूध की प्रोटीन से कम दरजे की है क्योंकि उसके पचने में बड़ी कठिनाईयाँ आ पड़ती हैं। अधिकतर तो वह सड़कर खाने के योग्य न रह कर हानिकारक भी हो जाती है दूध तो रखा रहने पर जम जाता और खट्टा भी हो जाता है परन्तु अंडा सड़ गल जाता है। इस प्रकार का सड़ा अंडा खाने में खराब मालूम होता है और हानिकारक हो जाता है। इसके विपरीत खट्टा या जमा दूध अधिकाँश लोगों को ताजे दूध की अपेक्षा अधिक रुचि कर और सुपाच्य होता है। दूध का यह गुण उसकी मिठास का कारण है। जो अण्डे में होता ही नहीं। सात्विक भोजन के साथ आधा सेर दूध अण्डे और माँस के बिना ही प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा शरीर में पहुँचा देता है।

विलायती देशों में मक्खन निकालने के बाद मखनियाँ दूध प्रायः जानवरों को खिलाया या फेंक दिया जाता है। वहाँ के डाक्टरों ने इस मखनियाँ दूध की बाबत लिखा है कि यदि यह दूध मनुष्य के खाने के काम में लिया जाय तो इस देश के लिये माँस से अधिक लाभदायक होगा। नौ औंन्स साड़े चार छटाँक) मखनियाँ दूध शरीर में इतना चूना तथा हड्याँ बनाने वाली सामग्री पैदा कर देता है। जितना 1 दर्जन अण्डे नहीं कर पाते। एक अण्डा 30 इकाई गर्मी शरीर में पहुँचाता है। इसके विपरीत भैंस का दूध 31, गाय का दूध 38 इकाई गर्मी शरीर में पैदा करता है।

अण्डे के खाने से पाचन मार्ग में सड़न पड़ जाती है। इस सड़न से एक प्रकार की नशे की हालत पैदा हो जाती है। इससे जी मिचलाना, सिर दर्द, मुँह में बुरी गंध आना और दूसरी ऐसा ही अन्य बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। इसके बजाय दूध, बादाम, मूँगफली आदि में अण्डे से अधिक प्रोटीन रहती है। डा॰ पोलो ने यह सिद्ध कर दिया है कि जितना दूध बादाम आदि की प्रोटीन खाने पर आमाशय में पाचक रस बनता है, उतना अण्डे की प्रोटीन से नहीं बनता। अण्डे की कच्ची सफेदी पर पाचक रसों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और दूसरे भोजनों के पचने में भी रुकावट होती हैं।

वेटल क्रीक सेनेटोरियम के सुपरिन्टेन्डेन्ट जान हारवेकी लोग साहब लिखते हैं कि माँसाहारियों के सब बहाने सब प्रकार से एक-एक करके सभी जल्दी 2 लोप होते जा रहे हैं। यथार्थ में वर्तमान समय में उनका किसी प्रकार का कोई भी बहाना किसी भी दशा में स्वीकार करने योग्य नहीं है जब कि अच्छे 2 पदार्थ खाने को मिल रहे हैं। वैद्य से,


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118