(श्री स्वामी श्रीविवेकानन्द जी)
सब धर्मों में ईश्वर प्रार्थना करने की रीति है। किन्तु जरा आपको यह स्मरण अवश्य रखना होगा, कि धन-सम्पति पाने, या पुत्रादि के लिए या आरोग्य होने के लिए, या स्वर्ग प्राप्ति के लिए भगवान से जो प्रार्थनायें की जाती हैं, वह विशुद्ध भक्ति में दाखिल नहीं हैं यह सब केवल बनिये की तरह क्रय-विक्रय है।
जो भगवान से शुद्ध प्रेम करना चाहते हैं, जो सच्चे अनन्य भक्त होना चाहते हैं, उनको उचित है, कि- वह इन सब साँसारिक कामनाओं का त्याग कर दें, तब उनको विशुद्ध भक्ति गृह में प्रवेश करने की आशा मिल जायगी। हमारे कहने का मतलब यह नहीं है कि- जो जिस वस्तु की इच्छा से भगवान की प्रार्थना करते हैं उन्हें वह वस्तु प्राप्त नहीं होती। नहीं, नहीं प्रार्थना से वह जो चाहते हैं, भगवान् उन्हें देते हैं। किन्तु वह हीन बुद्धि तथा निम्न श्रेणी के मनुष्य का धर्म है।
“उषित्वा जान्हवीतीरे कृपं खनति दुर्मतिः।”
अर्थ- वह मूर्ख है जो गंगा के तट पर रहकर जल के लिए कुँआ तैयार करा रहा है। सचमुच वह अवश्य ही मूर्ख है जो हीरे की खान में आकर काँच का टुकड़ा खोजता रहता है। इसी तरह भगवान् हरि हीरे ही खान समान है और यह सब धन, मान, ऐश्वर्य काँच के टुकड़े हैं। यह सभी जानते हैं, कि- एक दिन यह देह अवश्य विनष्ट हो जायगी, फिर भी बारम्बार इसे स्वस्थ रखने के लिये इसके आराम के लिये भगवान से प्रार्थना की जाती है। इस तुच्छ प्रार्थना में ही यह अमूल्य समय क्यों नष्ट किया जाता है।
देखा गया है कि- बहुत धनी मनुष्य भी अपने धन को कम समझकर उसका पूर्णरूप से उपभोग नहीं कर पाते हैं। यदि रक्खो! हम इस जगत् की सारी चीजें नहीं पा सकते। यदि सब चीजें न मिलें, तो क्या हर्ज है? देह एक दिन नष्ट होगी ही, इन सब वस्तुओं के लिए कौन चिन्तित हो जो अपने आप आये, आने दीजिये-जावें तो जाने दीजिये। चिन्ता न कीजिये, मस्त रहिये। इनका आना भी अच्छा और न आना भी अच्छा ही है। किन्तु भगवान् के समीप जाकर यह चीज वह चीज, माँगना अनन्य भक्ति नहीं कही जायगी।
ईश्वर को प्राप्त करना उस राजेश्वर के समीप लाभ की चेष्टा करना उन सबों की अपेक्षा बहुत अच्छा है। हम भिक्षुक के वेश में वहाँ नहीं पहुँच सकते। भिक्षुक की तरह सर्वांग में धूल लपेट कर यदि हम किसी सम्राट या बादशाह के समीप जाना चाहें, तो क्या हम वहाँ पहुँच सकते हैं? कभी नहीं। दरबान हम को दरवाजे से ही मार भगाएगा। भगवान् राजाओं के राजा, सम्राटों के सम्राट हैं, वहाँ भिक्षुक की तरह कामना रूपी चीथड़ा लपेट कर प्रवेश करने का किसी को अधिकार नहीं, वहाँ सौदे का काम न होगा।