महात्मा शैख़सादी की सूक्तियाँ

April 1951

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(डा॰ गोपाल प्रसाद ‘वंशी’ बेतिया)

(1) माल जिन्दगी के आराम के वास्ते है, किन्तु जिन्दगी माल जमा करने के वास्ते नहीं है। मैंने एक बुद्धिमान मनुष्य से पूछा, कि कौन भाग्यवान और कौन भाग्यहीन है? उसने उत्तर दिया कि जिसने खाया और बोया वही भाग्यवान है किन्तु जिसने भोगा नहीं लेकिन छोड़ कर मर गया वह भाग्यहीन है। उस शस्त्र के लिये ईश्वर से दुआ मत माँगो, जिसने ईश्वर भक्ति या परोपकार का काम न किया हो, तमाम उम्र रुपये जमा करने में बिता दी और उनको काम में भी न लाया।

(2) पैगम्बर मूसा ने करूं को इस तरह उपदेश दिया, कि तू लोगों के साथ उसी भाँति भलाई कर जिस भाँति ईश्वर ने तेरे साथ भलाई की है। करूं ने उसकी नसीहत पर कान न दिया। पीछे जो कुछ नतीजा निकला, वह तुम लोगों ने सुना ही है। जिसने धन से परोपकार न किया, उसने धन संग्रह करने के ख्याल में अपनी भावी आशाओं पर भी पानी फेर दिया। अगर तू संसारी धन से लाभ उठाना चाहता है तो ईश्वर ने जिस तरह तुझ पर मेहरबानी की है तू भी मनुष्यों पर दया कर। अरब लोग कहते हैं, कि दान करो किन्तु एहसान मत रक्खो। निश्चय रखो तुमको नफा जरूर मिलेगा। जहाँ परोपकार कर वृक्ष जड़ पकड़ लेता है वहीं से उसकी शाखें आसमान तक पहुँचती हैं। अगर तुम फल खाने की उम्मीद रखते हो तो मेहरबानी के साथ दरख्त लगाओ और उसकी जड़ पर आरा मत चलाओ। ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसने तुम्हारे ऊपर मेहरबानी की और उसने तुम्हें अपनी उदारता से वंचित न रखा। इस बात की शेखी न मारो, कि हम राजा के यहाँ नौकरी करते हैं। किन्तु ईश्वर को धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें राजा की सेवा में नियुक्त किया है।

धन वही सार्थक है जिससे परोपकार किया जाय। जिस धन से मनुष्य की भलाई न हो उस धन का होना ही व्यर्थ है। इसमें संदेह नहीं है कि परोपकार का फल हाथों-हाथ मिलता है। सत्पुरुषों का सर्वस्व ही परोपकार के लिये होता है। परोपकार के लिए ही वृक्षों में फल लगते हैं, परोपकार के लिये ही नदियाँ बहती हैं। परोपकार के लिए ही चन्द्र-सूर्य का उदय-अस्त होता है। परोपकार के लिए ही मेघ जल बरसाते हैं। साराँश यह है कि संसार में परोपकार करना ही सबसे बड़ा धर्म है।

(3) दो शख्सों ने वृथा कष्ट उठाया और व्यर्थ उद्योग किया एक तो वह जिसने धन जमा किया, किन्तु उसे भोगा नहीं। दूसरा वह, जिसने अक्ल सीखी, मगर उसका अभ्यास न किया।चाहे जितनी विद्या क्यों न पढ़ लो, अगर तुम उस पर अमल नहीं करते तो तुम नादान हो। वह जानवर जिस पर किताबें लदी हुई हैं, न तो वह विद्वान है न बुद्धिमान। उस मूर्ख को क्या खबर, कि उसके ऊपर किताबें लदी हैं या ईंधन।

(4) विद्या धर्म-रक्षा के लिये है न कि धन जमा करने के लिये। जिसने धन कमाने के लिए अपनी नामवरी और विद्या खर्च कर दी, वह उस के समान है-जिसने खलिहान बनाया और उसे बिल्कुल जला डाला।

(5) विद्वान जो संयमी-परहेजगार नहीं है अन्धा मतलबी है। वह दूसरों को राह दिखाता है किन्तु उसे स्वयं राह नहीं मिलती। जिसने अपनी उम्र बेखबरी से गवाँ दी, वह उसके माफिक है जिसने रुपया तो खर्च कर डाला मगर कुछ चीज न खरीदी।

(6) बादशाहत की नामवरी अक्लमन्दों से होती है और धर्म-धर्मात्माओं से पूर्णता प्राप्त करता है। अक्लमन्दों को राज-दरबार में नौकरी पाने की जितनी जरूरत है, उससे बादशाहों को अक्लमन्दों की अधिक जरूरत है। ऐ बादशाह! ध्यान देकर मेरी नसीहत सुन, तेरे दफ्तर में इससे अधिक कीमती नसीहत नहीं है, कि अपना काम अक्लमन्दों के सुपुर्दकर, यद्यपि सरकारी काम करना अक्लमन्दों का काम नहीं है।

(7) तीन चीजें तीन चीजों के बिना कायम नहीं रहतीं, दौलत बिना सौदागरी के, इल्म बिना बहस के और बादशाहत बिना दहशत के।

(8) दुष्टों पर दया करना, सज्जनों के ऊपर जुल्म करना है। जालिमों को माफ करना, सताये हुओं पर जुल्म करना हैं। अगर तुम कमीनों के साथ मेल-जोल रखोगे और उन पर मेहरबानी करोगे, तो वे तुम्हारी हिमायत से अपराध करेंगे और तुम को उनके अपराधों का हिस्सेदार बनना पड़ेगा।

(9) बादशाहों की मीठी-मीठी बातों पर भरोसा न करना चाहिए। क्योंकि बादशाहों की दोस्ती जरा से शक पर टूट जाती है और लड़कों की प्यारी-प्यारी बातें रात भर में बदल जाती है। जिनके हजार चाहने वाले हैं। उसे अपना दिल मत दो, अगर दो तो जुदाई की तकलीफें सहने को तैयार रहो।

(10) मित्र के सामने अपना सारा गुप्त भेद मत खोल दो, कौन जाने वह कब तुम्हारा शत्रु हो जावे? इसी भाँति शत्रु को भी हर तरह की तकलीफें मत दो कौन जाने वह कभी तुम्हारा मित्र ही हो जावे? वह भेद जिसे तुम गुप्त रखना चाहते हो, किसी को भी मत बताओ, चाहे वह विश्वास योग्य ही क्यों न हो। अपनी गुप्त बात जितनी अच्छी तरह तुम खुद छिपा सकते हो, दूसरा हरगिज न छिपा सकेगा। किसी भी गुप्त बातों को एक शख्स से कहना और उसे दूसरे से कहने की मनाही करने से एक मद चुप रहना भला है। ऐ भले आदमी! पानी को निकास पर ही रोक। जब वह नदी के रूप में बहने लगेगा तब तू उसे न रोक सकेगा। जो बात सब लोगों के सामने करने लायक नहीं है उसे पोशीदगी में भी मत कर।

(11) आदमियों के छिपे हुए राज जाहिर मत करो, क्योंकि उनकी बदनामी करने से तुम्हारी भी बेऐत बारी हो जायगी।


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