अपने में अच्छी आदतें डालिए।

June 1949

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(श्री के. वी. सुव्बाराव, मानिकपुर)

पहले एक विचार उत्पन्न होता है फिर वह शारीरिक अभ्यास में लाया जाता है और बार-बार और लगातार दुहराया जाता है उसी को आदत नाम दिया गया है।

आदत, बिजली की शक्ति के समान तेज और शक्तिशाली होती है। मनुष्य अपनी आदत का एक खिलौना बन जाता है और उसी के आधार पर उसके भविष्य का निर्माण होता है। कारण यह है कि उसे अपनी आदत के समान मित्र, साधन, विचार और अवसर बराबर प्राप्त होते रहते हैं। एक सी आदत वालों में स्वाभाविक प्रेम और एक दूसरे के विरुद्ध आदत वालों में स्वाभाविक भिन्नता बिना किसी परिचय के ही पायी जाती है।

पुरानी आदतें नयी आदतों की बजाय अधिक शक्तिशाली होती हैं। जब कभी आप नई आदतों का बीजारोपण करना चाहते हैं तो पुरानी आदतें उसमें बार-बार बाधा डालती हैं और नई आदत को बढ़ने से रोकती हैं। जिससे वह नई आदत डालने वाला व्यक्ति घबरा कर निराश हो जाता है और जब तक वह आदत के सिद्धान्त और असलियत का अनुभव नहीं कर लेता, सोचता है कि बदनसीब है, परन्तु ऐसा सोचना भूल है। पुरानी आदतें जो आज इतनी प्रबल हो रही हैं, एक दिन में नहीं पड़ गई हैं। काफी लम्बे समय तक, काफी दिलचस्पी के साथ अनेकों बार उन्हें क्रिया रूप में परिणित किया गया है तब वे आज इतनी मजबूत बन पाई हैं कि हमारे मन पर वे अधिकार जमा सकीं है और नई आदतों को न जगने देने के लिए संघर्ष करती हैं। इससे सिद्ध होता है कि कोई भी आदत तब मजबूत होती है जब उसका पर्याप्त समय तक कार्य रूप में अभ्यास किया जाता है। आज जो आदतें पड़ी हुई हैं किसी समय वह भी नई रहीं होगी और उनको अपने पैर जमाने में अपने से पुरानी आदतों के साथ उसी प्रकार संघर्ष करना पड़ा होगा जैसा कि आज नई आदतें डालने की हमारी इच्छा को पुरानी आदतों से संघर्ष करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में निराश होने का कोई कारण नहीं। जब पूर्वकाल में पुरानी आदतों को हटाकर नई आदतें डालने में हम सफल हो चुके हैं तो कोई कारण नहीं कि अब फिर वैसा न किया जा सके।

ईश्वर का अस्तित्व, जीवन की हर एक स्थिति में, हर जगह और हर समय ध्यान में रखना हमारी एक स्वाभाविक आदत होनी चाहिए और इस आदत का बीजारोपण जीवन के शुरुआत से ही करना चाहिए। क्योंकि यह आदत जीवन की श्रेष्ठतम आदतों में सर्वोपरि महत्व की है।

जो मनुष्य ईश्वर पर विश्वास करता है, सदैव उसका ध्यान रखता है, हर जगह उसकी सत्ता को देखता है वह पाप कर्म नहीं कर सकता। जो ईश्वर विश्वासी है वह परम निर्भय रहता है, उसे मृत्यु का, हानि का, रोग का, वियोग का, आक्रमण का, ठगी का या किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता। ईश्वर भक्त सदा ही निर्भय और निर्बन्ध रहते हैं।

आप अच्छी आदतें डालिए। क्योंकि आदतों से ही मनुष्य की जीवन धारा का निर्माण होता है। ईश्वर परायणता, आस्तिकता सब से अच्छी आदत है, क्योंकि उसके साथ-साथ वे सभी आदतें अपने आप अपने में आ जाती हैं जो जीवन को सुख शान्तिमय बनाने के लिए परम आवश्यक हैं।


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