कुसंस्कारों से भरे हुए मूर्ख होने की अपेक्षा नास्तिक होना ज्यादा अच्छा है क्योंकि उनमें कुछ न कुछ जीवन तो होता है, उनके सुधार की आशा की जा सकती है। लेकिन जिन लोगों के मस्तिष्क में कुसंस्कार घुस जाते हैं वे बिल्कुल बेकार हो जाते हैं, मृत्यु के कीड़े उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और उनका दिमाग फिर जाता है।
-स्वामी विवेकानन्द।