जीवन-दीप

April 1949

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जीवन के बुझते दीपों में, हम फिर नव ज्योति जगायेंगे।

जिन नयनों के खारे आँसू, प्रतिपल भू पर झर जाते हैं।

जिन प्राणों के अरमान सदा, निष्फल होकर मर जाते हैं॥

जिनके स्वप्नों का सत्य नहीं, जिनके भावों में नश्वरता-

हम ऐसे दग्ध विकल हृदयों को, नव संदेश सुनायेंगे॥

जो जगती के विस्तृत पथ पर, दो पग भी आगे बढ़ न सके।

जो मन में चिर उल्लास लिये, दुर्गम पर्वत पर चढ़ न सके॥

जो बैठ गये थोड़ा चलकर, जिनमें उठने की शक्ति नहीं-

हम उन मृतप्राय मानवों में, नव-बल संचार करायेंगे॥

जिनके अन्तस्तल में दारुण, दुख का सागर लहराता है।

जिनके सम्मुख आशाओं का, मरुथल सा बनता जाता है॥

जिनकी मन-वीणा टूट गयी, जिनके गीतों में नीरसता-

हम उनके बिखरे तारों को, स्वर-क्रम से आज सजायेंगे॥

रे उठो आज! रे सजों आज, संघर्षों का युग आया है।

बढ़ चलो वीर लेकर मशाल, जन-जन ने तुम्हें बुलाया है॥

तोड़ो बन्दी कारा अपनी, तोड़ो, बन्धन की जंजीरें-

हम आग लगा कर इस जग में, फिर दुनिया नयी बसायेंगे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: