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‘कर्त्तव्य’ वह कार्य है जिसे करना हम लोगों का परम धर्म है और जिसके न करने से लोग और लोगों की दृष्टि से गिर जाते और अपने कुचरित्र से नीच बन जाते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में कर्त्तव्य का पालन बिना दबाव के नहीं हो सकता, क्योंकि पहले-पहले मन आप उसे करना नहीं चाहता। इसका आरम्भ पहले घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ लड़कों का कर्त्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्त्तव्य लड़कों की ओर देख पड़ता है। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ौसियों और राजा-प्रजाओं के परस्पर कर्त्तव्यों को देखते हैं। इसलिए संसार में मनुष्यों का जीवन कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है, जिधर देखो उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य देख पड़ते हैं। बस इसी कर्त्तव्य का पूरा-पूरा पालन करना हम लोगों का धर्म है, और इसी से हम लोगों के चरित्र की शोभा बढ़ती है।
हम सब लोगों के मन में एक ऐसी शक्ति है जो हम सभी को बुरे कामों के करने से रोकती और अच्छे कामों की ओर हमारी प्रवृत्ति को झुकाती है। यह बहुधा देखा गया है कि जब कोई मनुष्य खोटा काम करता है तब बिना किसी के कहे आप ही लजाता और अपने मन में दुखी होता है। एक दूसरा मनुष्य जो बुरा कार्य नहीं करता, सदा प्रसन्न रहता और उसके मन में कभी-कभी किसी प्रकार का डर तथा पछतावा नहीं होता। परन्तु जब हम कोई बुरा कार्य कर बैठते हैं तब हमारी आत्मा हमें कोसने लगती है। इसलिए हमारा धर्म है कि हमारी आत्मा हमें जो कहे, उसके अनुसार हम करें।
दृढ़ विश्वास रखो कि जब तुम्हारा मन किसी काम के करने से हिचकिचाये और दूर भागे तब कभी तुम उस काम को न करो। तुम्हें धर्म पालन करने में बहुधा कष्ट उठाना पड़ेगा पर इससे तुम साहस न छोड़ो। क्या हुआ जो तुम्हारे पड़ौसी ठग-विद्या और असत्यता में धनाढ्य हो गये और तुम कंगाल ही रह गये। क्या हुआ जो दूसरे लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़ी-बड़ी नौकरियाँ पा लीं और तुम्हें कुछ न मिला और क्या हुआ जो दूसरे नीच कर्म करके सुख भोगते हैं और तुम सदा कष्ट में रहते हो। तुम अपने कर्त्तव्य-धर्म को कभी न छोड़ो और देखो इसमें सन्तोष और आदर मिलता है।
प्रलोभनों को देखकर मत फिसलो। पाप का आकर्षण आरम्भ में बड़ा लुभावना प्रतीत होता है पर वह अन्त में धोखे की टट्टी सिद्ध होता है, जो इस चंगुल में फँस गया उसे तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती हैं। इसलिए पाठको, सावधान रहो। प्रलोभनों में न फँसो। चाहे कितनी ही कठिनाई का सामना करना पड़े पर कर्त्तव्य पर दृढ़ रहो। कर्त्तव्य पर दृढ़ रहने वाले मनुष्य ही सच्चे मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं।
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वर्ष-10 संपादक-श्रीराम शर्मा आचार्य अंक-4