रजत-कण

April 1949

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(श्री गोपाल प्रसाद वंशी, वेतिया)

क्या तुम्हें जीवन से प्रेम है? तब समय को व्यर्थ नष्ट मत करो, क्योंकि जीवन उसी से बना है।

सतर्कता से अवसर की ताक में रहना, कौशल और साहस से अवसर को प्राप्त करना, शक्ति और दृढ़ता के द्वारा अवसरों को सर्वोत्तम सफलता पर पहुँचाना-निश्चय ही सफलता के देने वाले प्रधान सद्गुण हैं।

प्रत्येक आपत्ति श्राप के समान होती है। जीवन की प्राथमिक आपत्तियाँ बहुधा आशीर्वाद होती हैं। जीती हुई कठिनाइयाँ, न केवल हमें शिक्षा ही देती हैं, बल्कि भविष्य के प्रयत्नों में हमें साहसी बनाती हैं।

इसमें संदेह नहीं कि बड़े-बड़े कारखानों के मालिकों ने अपना जीवन ‘गरीब लड़कपन’ से शुरू किया था।

ज्ञान और धर्म का संचय शिक्षा का विकास ही है। संयम और त्याग का संचय सच्चा आदर्श है।

जो यह समझता है कि वह जानता है, तो यह समझ ही उसकी नासमझी की निशानी है। हाँ जो समझता है कि वह बहुत कम जानता है, उसी की समझ सच्ची राह पर है।

यदि आप अपने जीवन को सुखी करना चाहते हैं, तो प्रतिदिन उस बल स्वरूप परमात्मा से बल प्राप्त कर उसका उपयोग गरीब और असहाय लोगों को उन्नत बनाने में कीजिए, तभी सच्ची शान्ति मिल सकती है।

ठाली बैठे मनुष्य का दिमाग शैतान का कारखाना है। जो सर्वात्मा प्रभु को अपने में और सब में देखता है, उसे दुख नहीं होते।

मनुष्य को तुच्छ स्वार्थों का त्याग करना चाहिये, क्योंकि उसी के कारण वह संसार के बन्धनों में बंध जाता है। इस असन्त् निजत्व का त्याग करना ही सच्चा मार्ग है।

संसार के प्राणियों के प्रेम में अपने आपको भूल जाना और उनकी सेवा करने में अपना कुछ भी विचार न करना, इसी का नाम वास्तव में सच्ची सेवा है।

पुस्तक पढ़ने या परीक्षा में पास करने से ही तो विचारशील नहीं हुआ जाता, पुस्तक पढ़ना एक बात है और विचारक होना दूसरी बात।

पुराने सिद्धाँत केवल पुराने होने के कारण आदरणीय नहीं हो सकते।

जो नित्यों का भी नित्य है, चेतनों का भी चेतन है, जो अकेला ही बहुतों की कामनाओं को पूर्ण करता है, उस शरीरस्थ आत्मा का जिसको अनुभव होता है, उसी को शाश्वत शांति प्राप्त होती है।

जिसकी ईश्वर में दृढ़ विश्वास और अचल श्रद्धा होती है, वह दुख, क्लेश तथा अशाँतिमय जीवन कभी व्यतीत कर ही नहीं सकता।

वह सदा प्रसन्न-चित्त, शाँत और निर्भय रहता है। उसकी मुद्रा गंभीर दिखायी देती है। वह अपने लिए कुछ भी नहीं सोचता है और न किसी बात की चिंता करता है।


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