सत्यता में अकूत बल भरा हुआ है।

November 1945

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आप सदा सत्य बोलिए, अपने विचारों को सत्यता से परिपूर्ण बनाइए और आचरण में सत्यता बरतिए। अपने आपको सत्यता से सराबोर रखिए, ऐसा करने से आपको एक ऐसा प्रचंड बल प्राप्त होगा, जो संसार के समस्त बलों से अधिक होगा। कानफ्यूशियश कहा करते थे कि सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल है। परन्तु वस्तुतः सत्य में अपार बल है। उसकी समता भौतिक सृष्टि के किसी बल के साथ नहीं की जा सकती।

जो अपनी आत्मा के सामने सच्चा है। जो अपनी अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार आचरण करता है। बनावट, धोखेबाजी, चालाकी को तिलाँजली देकर जिसने ईमानदारी को अपनी नीति बना लिया है वह इस दुनिया का सबसे बड़ा बुद्धिमान व्यक्ति है। क्योंकि सदाचरण के कारण मनुष्य शक्ति का पुँज बन जाता है। उसे कोई डरा नहीं सकता, उसे किसी का डर नहीं लगता। जब कि झूठे और मिथ्याचारी लोगों का कलेजा बात-बात में सशंकित रहता है और पीपल के पत्ते की तरह काँपता रहता है।

धन बल, जन बल, तन बल, मन बल आदि अनेकों प्रकार के बल इस संसार में होते हैं परन्तु सत्य का बल सब से अधिक है। सच्चा पुरुष इतना शक्तिशाली होता है कि उसके आगे मनुष्यों को ही नहीं-देवताओं को ही नहीं-परमात्मा को भी झुकना पड़ता है।

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शारीरिक दृष्टि से पशुओं से भी बहुत गये बीते मानवी प्राणी को सृष्टि का मुकुटमणि बनाने वाला “मन” तत्व ही है। इस मनोबल की महत्ता के कारण ही वह परमात्मा का राजकुमार कहलाता है। मन के द्वारा ही मनुष्य स्वर्ग सुख का आनन्द प्राप्त करता है और उसी के कारण दुखों की नारकीय अग्नि में झुलसता है। इस महान “मन तत्व” की अद्भुत, आश्चर्यजनक, विचित्र एवं रहस्यमय लीलाओं को जानना, जीवन को सुविधापूर्वक जीने के लिए अत्यन्त ही आवश्यक है। इस महान ज्ञान के-मनोविज्ञान शास्त्र के-प्रकाण्ड पण्डित-

प्रो. रामचरण जी महेन्द्र, एम. ए. डी. लिट् , पी. एच. डी. डी. डी., के सम्पादन में- प्रायः सबका सब उन्हीं की लेखनी से लिखा जाकर

ता. 1 जनवरी सन् 1946 को प्रकाशित होगा। पेपर कन्ट्रोल कानून के अनुसार अखण्ड-ज्योति को बहुत थोड़ा कागज मिलता है। इसलिए पृष्ठ संख्या साधारण अंक से दूनी के करीब ही होगी। पर इससे भी पाठ्य सामग्री बहुत अधिक है। इसलिए 1 जनवरी का अंक-मनोविज्ञान अंक का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध होगा। दो अंकों में वह सामग्री पूरी होगी। सामग्री कितनी महत्वपूर्ण होगी इसका कुछ परिचय नीचे की विषय सूची से प्राप्त किया जा सकता है।

1 जनवरी सन् 46 के मनोविज्ञान अंक के पूर्वार्ध में रहने वाले कुछ लेखों की सूची।

मनोविज्ञान का संदेश

नवजीवन का पथ प्रदर्शक मनोविज्ञान

हमारा अद्भुत मन, उसका स्वभाव, आदतें

मन की संचालक- आत्मा

मानसिक शक्तियों की अभिवृद्धि के उपाय

मनोजय की समस्या

मनोविज्ञान की दृष्टि से, स्वर्ग, नरक, मृत्यु, परलोक

जनता की मनोवृत्तियों से लाभ उठाइए

मनोविज्ञान के कुछ विचित्र प्रश्न

दूसरे के मनोभावों को समझिए

दाम्पत्ति जीवन को समझिए

नन्हें शिशुओं की प्रवृत्ति का अध्ययन

धार्मिक सिद्धान्तों पर विश्वास क्यों करें।

मनुष्य का ध्यान किन नियमों पर कार्य करता है?

कल्पना साक्षात् कल्पलता है।

स्वभाव बदलना

दैनिक व्यवहार में सफलता प्राप्त करने के उपाय

1 फरवरी 46 के ‘उत्तरार्ध’ में रहने वाले लेख।

मनोविज्ञान द्वारा चिकित्सा पद्धति का विकास

विश्वास से चिकित्सा

पागलपन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और निवारण

रोग और व्याधि के मनोवैज्ञानिक पहलू

मानसिक उलझनों से मुक्ति

मनः स्थिति का भोजन पर प्रभाव

भोजन के समय के विचार

मनोभावों से स्वास्थ्य का संबंध

मनोविश्लेषण पद्धति

लेख एक से एक अमूल्य हैं। विशेषाँक की पृष्ठ संख्या थोड़ी ही रहते हुए भी उसमें ‘गागर में सागर’ रहेगा।

1 जनवरी की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा कीजिए।


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