(संकीर्तन)
साधक को चाहिये कि वह साधन के कमरे में एक तख्ते पर अच्छा कोमल गद्दा लगा ले और दूसरे तख्ते को नंगा रहने दे। पहले कोमल गद्दे पर एकान्त में चित लेटा जाए। सारे ध्यान को गद्दे के स्पर्श पर एकत्र कर दे। चाहे तो किसी भी मन्त्र का जप कर सकता है। बिना हिले गद्दे पर उतनी देर पड़ा रहे जितनी देर में शरीर करवट बदलने के लिए आकुल हो उठे। उस समय गद्दे का स्पर्श अप्रिय प्रतीत होगा। वहाँ से उठकर तख्ते पर जाकर लेटा जाए और संकल्प द्वारा अनुभव करने का प्रयत्न करे कि तख्ते का स्पर्श गद्दे के समान कोमल है। तख्ते से थकने पर उठकर पुनः गद्दे पर आ जाना चाहिए और उसमें तख्ते की कठोरता की भावना करनी चाहिए। धीरे-धीरे इस अभ्यास को बढ़ाना चाहिये।
थोड़े दिनों में अभ्यास हो जाने पर गद्दे और तख्ते के स्पर्श का अनुभव इच्छानुसार विनियमित हो जाया करेगा। जब ऐसा हो जावे तो गद्दे के ऊपर अच्छी धुनी हुई रुई या पुष्प बिछा लो और तख्ते को हटाकर पृथ्वी पर छोटी-छोटी कंकड़ियां डाल लो। पूर्वोक्त रीति से दोनों में एक दूसरे के स्पर्श का अनुभव करने का प्रयत्न करो। इसका परिणाम यह होगा कि साधक के लिये पुष्पों पर या काँटों पर शयन करना समान हो जावेगा।
स्पर्श योग के साधक को फाल्गुन के महीने से केवल कौपीन धारण कर लेना चाहिए। दूसरा कोई वस्त्र न रखे। वृक्षों के नीचे ही रात्रि-दिन रहे। गर्मी में धूप और वर्षा में जल को सहन करें। ऐसा करने से जाड़े में शीत भी सहन हो जाएगा। रहने के लिए गुफा, कुटी, छप्पर कुछ न बनावे। शरीर में तेल न लगावे। केश कटावे नहीं। मिट्टी मलकर स्वच्छ कर लिया करें। स्पर्श योग का साधन तपस्या है। शीतोष्ण एवं मृदु, कठिन सब प्रकार के विषय स्पर्शों को बदलते हुए त्वक, पर विजय प्राप्त करना है। निरन्तर अभ्यास से जब त्वगेन्द्रिय पर विजय हो जायगी तो कोई भी स्पर्श ज्ञात न होगा। इच्छा करने पर शीत भी उष्ण एवं उष्ण भी शीत का अनुभव देगा। इस तितिक्षा और भावना के फल स्वरूप अद्भुत एवं दिव्य स्पर्शों की जागृति होगी। अकस्मात् सुखकर स्पर्शों का अनुभव होने लगेगा। साधक को प्रलुब्ध होकर उन्हीं में स्थित रहने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। निरपेक्ष रहकर अपनी तितिक्षा को प्रबल करते जाना चाहिए। फलतः मन की शक्ति क्षीण हो जायगी और साधक को अन्तःस्पर्श प्राप्त होगा। यहाँ वह परमानन्द का अनुभव करेगा।