(श्रीयुत महेश वर्मा, हर्बर्ट कॉलेज कोटा)
चित्त में दुःख उत्पन्न करने वाली विचार तरंगों की गति चक्राकार होती है। द्वेष का प्रत्येक विचार ऐसे ही विचारों का मंडल चारों ओर बनाता है और प्रत्येक द्वेषी को हानि पहुँचाता है। मानव के मन से कोई भी विचार तरंग निकल कर पूरा मंडल बना कर पुनः उसी मन में वापिस आकर प्रवेश कर जाता है।
यदि तुम्हारे हृदय में किसी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो जाय तो उस घातक भावना को तुरन्त निकालिए अन्यथा वे तुम्हीं को हानि पहुँचायेंगे।
इसी प्रकार जब तुम्हारे अन्तःकरण में किसी के लिए प्रेम एवं आदर के भाव उत्पन्न होंगे तो वे दूसरे के हृदय से टकरा कर तुम्हारे हृदय में पुनः प्रवेश करेंगे। ऐसे विचारों का एक मंडल बन जायगा।
यदि आन्तरिक दृष्टि से देखा जाय तो हृदय की तिजोरी में सामर्थ्य, समृद्धि, शान्ति के विचार रखने चाहिए। ये रत्न अधिकाधिक बढ़ेंगे। यदि तुम ईर्ष्या, द्वेष, शंका के शंख-घोंघे रखोगे, तो ये ही बढ़कर सम्पूर्ण जीवन को भार-स्वरूप बना देंगे।