मिट्टी का चमत्कार

November 1945

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( डॉ. रामचरण महेन्द्र एम. ए. डी. लिट्)

“कल कास्टिक लगायेंगे और आंखें पाँच-छः दिन में बिल्कुल साफ हो जायेगी। लाली भी जाती रहेगी और रोहे भी ठीक हो जाएंगे।”

“कास्टिक टच” किया गया, प्लोटारगल एवं आजिराल भी डलता रहा पर आंखें दुःखती ही रहीं। रात भर पीड़ा से बालिका रोती रहती, बड़ी परेशानी रही। एक दिन आरोग्य मंदिर, गोरखपुर के डॉक्टर विट्ठलदास जी मोदी को पत्र लिख रहा था। चलते-चलते अव्यक्त रूप से आंखें दुःखने की मेरी परेशानी भी पत्र की एक पंक्ति में प्रकट हो गई। मोदी जी वैसे तो पत्र का उत्तर धीरे-धीरे देते हैं किन्तु इस बार पत्र लौटती डाक से प्राप्त हो गया। आपने लिखा था कि दुखती आँख पर मिट्टी की पट्टी का प्रयोग कीजिए और बालिका को मिर्च, मीठे, तेल इत्यादि गरिष्ठ पदार्थों से बचाइए।

“मिट्टी की पट्टी!” क्या इससे कुछ होगा? एकबारगी यही विचार मेरे मनोजगत में उठा। किंतु डॉक्टर की सलाह टालना मैं पाप समझता हूँ अतः दवाई करने की ठानी। प्रयोग मेरे लिए बिल्कुल नया था।

नौकर को आदेश दिया- “बाग से चिकनी मिट्टी खोद लाओ। उसमें कंकण पत्थर अधिक न हों। गोबर, मैल, तथा अन्य गन्दी वस्तुएँ पास न हों, साफ स्थान से खोद कर ले आना।”

घर आने पर मैंने प्रथम बार मिट्टी को साफ किया। हरी घास के तिनके बीने। फिर छलनी में छान कर कुम्हार की तरह उसमें पानी मिलाकर मरहम जैसा बना लिया। फिर एक बारीक कपड़ा दुखती आँखों पर रखकर मिट्टी के मरहम का एक अस्तर उस पर बिछाया। तत्पश्चात् एक और गीली पट्टी उस पर रख कर बाँध दी। मिट्टी की पट्टी दो-दो घंटे के बाद बदली जाती रही। मिट्टी को ठंडी रखने के लिए बर्फ से उसे भिगोता रहा। हवा का उपक्रम भी जारी रहा। पीने के लिए ठंडा पानी तथा भोजन में दूध, फल, तथा ठंडा जल दिया जाता रहा।

मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब रात्रि में उस दिन बालिका रोई नहीं। सुख की नींद सोई। प्रातःकाल आँख खुली पर सूजन काफी थी। लाली तो बिल्कुल नहीं गई थी। दूसरे दिन भी यही चिकित्सा जारी रही। तीसरे दिन नेत्र ठीक हो गए। वे क्रमशः अपने प्राकृतिक ढंग पर कार्य करने लगे।

उस दिन से मैं प्रकृति माता की मिट्टी की अद्भुत आरोग्य शक्ति का लोहा मानने लगा हूँ। जिनकी आँखें दुखती हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि वे अवश्य इस चिकित्सा की परीक्षा कर देखें। दुर्भाग्य से आज अंग्रेजी दवाइयों से बीमार को दबा देने का यत्न किया जाता है किन्तु प्रकृति के उपचार से रोग स्वयं जड़ से नष्ट हो जाता है।


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