गरीबी का बल

November 1945

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(ले.- कुमारी कैलाश देवी वर्मा)

जीवन-सामंजस्य निर्धारित करने वाले उपकरणों में यद्यपि शक्ति व धन दोनों की ही आवश्यकता है। फिर भी निर्धन मनुष्य भी शक्तिशाली हो सकता है क्योंकि निर्धनता व निर्बलता दोनों पृथक-पृथक हैं।

“नर हो, न निराश करो मन को” हमारे उद्दीप्यमान कवियों का कथन है। स्वास्थ्य व शक्ति दैविक अथवा ईश्वर प्रदान शक्तियाँ नहीं है मनुष्य स्वयं अपने लिए इनका निर्धारण करता है। परन्तु प्रायः भ्रमवश होकर धन को स्वास्थ्य एवं शक्तिदायक समझ लेता है।

यह ठीक है कि सम्पत्ति होने पर कितनी ही ऐसी बातें अनायास हमको प्राप्त होती हैं जिनकी स्वास्थ्य और शक्ति के लिए अतिशय आवश्यकता होती है और धन होने पर जीवन में ऐसी अनेक सुविधायें भी प्राप्त होती हैं। किन्तु यह भी सर्वथा मान्य है कि स्वास्थ्य और शक्ति के लिए धन के उपयोग की कुछ भी आवश्यकता नहीं है। धन में कुछ उपयोगिताएं होने पर भी स्वास्थ्य और शक्ति के लिए, धन के नाम कलंक पूर्ण है और यह कलंक मिथ्या नहीं है।

सात्विक व संयत-जीवन बिताकर स्वास्थ्य बड़ी सुगमतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। धनाभिमानियों के शरीर आज निर्बल और रोगी क्यों मिलते? धन हीन मनुष्य स्वस्थ और बलिष्ठ बन सकता है, यदि यह ज्ञात होता और मनुष्यों को इस पर विश्वास होता तो स्वास्थ्य और शक्ति के हताश स्त्री-पुरुष सदा के लिए अपने जीवन की श्री न खो बैठते!


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