‘अखण्ड-ज्योति’ का भूत और भविष्य

November 1945

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‘अखण्ड-ज्योति’ का आध्यात्मिक मिशन विगत वर्षों से अपने वर्तमान स्वरूप में कार्य रहा है। इस समय में क्या कार्य हुआ यह जानने की परिवार के हर एक सदस्य को जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। जैसे किसी घर की स्थिति की समुचित जानकारी उस घर में रहने वालों को होनी आवश्यक है। उसी तरह ‘अखण्ड-ज्योति’ के परिजनों को अपने आध्यात्मिक घर की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। इसलिए नीचे की पंक्तियों में अब तक के कार्य पर संक्षिप्त दृष्टि डाली जा रही है।

अखण्ड-ज्योति के संपादक का घर आगरा होने के कारण कई सुविधाओं की दृष्टि से आरंभ आगरा से ही किया गया था, परन्तु जिन महात्माओं की आत्मिक प्रेरणा से यह मिशन चलता है उनका आदेश हुआ कि-”उर्वर भूमि में ही अच्छी खेती हो सकती है। कल्प कल्पाँतर से आध्यात्मिक विभूतियों का अतुलित भण्डार जहाँ जमा होता रहा है, ऐसी पुनीत मथुरापुरी इस कार्य के लिए उचित क्षेत्र है। वहाँ प्रकट और अप्रकट रूप से आत्मिक जगत की सर्वोच्च विभूतियों का आवागमन बना रहता है। उनका चरण प्रसाद प्राप्त करते रहने से यह पुण्य कार्य अधिक सुपल्लवित होगा।” इस आदेश अनुसार अपने घर पर रहने से मिलने वाली विधाओं को छोड़कर “अखण्ड-ज्योति” को मथुरा लाया गया। आरम्भ के एक वर्ष में यह कार्य आगरा रह कर तत् पश्चात् मथुरा चला आया और तब से अब तक नियमित रूप से यहीं है।

अखण्ड-ज्योति पत्रिका का देश के कोने-कोने में प्रसार हुआ है। गोरखपुर के “कल्याण” को छोड़ कर एक भी धार्मिक पत्र इसके बराबर प्रचलित नहीं है। भारतवर्ष का एक भी प्रान्त ऐसा नहीं है जहाँ पर्याप्त संख्या में उसकी पहुँच न हो। भारत से बाहर भी कई देशों में वह जाती है। जो व्यक्ति इसे मँगाते हैं वे भार स्वरूप नहीं वरन् एक-एक पंक्ति का मनन करने की दृष्टि से मँगाते हैं। यही कारण है कि यदि कभी इसके प्रकाशन में एक सप्ताह की भी देर हो जाय तो पूछ-ताछ के सैकड़ों पत्र आ जाते हैं। यहाँ से दो-बार जाँच कर ठीक समय पर हर महीने पत्रिका भेजी जाती है, तो भी जिन किन्हीं का अंक रास्ते में खो जाता है वे उसे प्राप्त करने के लिए पूरा प्रयत्न करते हैं। कोई-कोई तो उत्सुकता की अधिकता के कारण अंक मिलने की शिकायत बड़े कटु शब्दों में भी करते हैं। यह कटु शब्द किसी दुर्भावना के नहीं वरन् उस अंक की प्राप्ति संबंधी उत्सुकता के प्रतीक होते हैं। जिनकी फाइलों के कोई पुराने अंक गुम हो जाते हैं वे कभी-कभी एक-एक रुपया प्रति अंक देकर भी उन अंकों को प्राप्त करना चाहते हैं। यह सब बाते प्रकट करती हैं कि पाठक अखण्ड-ज्योति को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं और उसका महत्व अनुभव करते हैं।

गत छः वर्षों में लाखों व्यक्तियों ने अखण्ड-ज्योति का आध्यात्मिक संदेश सुना है। इससे लोगों के व्यावहारिक जीवन में असाधारण परिवर्तन हुए हैं। सैकड़ों व्यक्तियों को हम स्वयं जानते हैं जिनके जीवन की दिशा बिल्कुल बदल गई। कुछ से कुछ हो गये। हजारों व्यक्ति ऐसे हैं जिनके परिवर्तन संबन्धी समाचार हम तक नहीं भेजे गये हैं पर निश्चित रूप से उनका दृष्टिकोण अधर्म से हटकर धर्म में आयोजित हो गया है। यह प्रगति बड़ी तीव्र गति से चल रही है। अखण्ड-ज्योति को बाँचने वाला अपने अन्दर एक परिवर्तन अनुभव किये बिना नहीं रह सकता। कारण यह है कि एक पंक्ति का एक-एक अक्षर अत्यंत सचाई और तपःपूत मनोवस्था में लिखा जाता है। लेखक के गहन अन्तः प्रदेश में से निकले हुए भाव पाठकों के हृदयों में बहुत गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं। कुछ अभागों को छोड़ कर शेष सभी पाठक जिनने एक बार इस पत्रिका को अपना लिया फिर छोड़ा नहीं। हर वर्ष नियमित रूप से पाठक बना रहता है।

गत अंक से यह मालूम हो चुका होगा कि गत छः वर्ष लड़ाई के कारण पत्र-पत्रिकाओं के लिए मृत्यु तुल्य संकट के समय थे। उस समय में हाथ का कागज बनाने की एक अनोखी तरकीब प्रभु कृपा से निकल आई। हाथ के कागज पर छपी पत्रिका और पुस्तकों का बाह्य कलेवर खराब होते हुए भी पाठकों ने उसे अपनाया। घाटे की पूर्ति के लिए इस ज्ञान यज्ञ की सहायता में पाठकों ने यथाशक्ति धन भी दिया। इस प्रकार वह संकट टल गया। अब भी कागज सम्बन्धी कड़े कन्ट्रोल कायम हैं, पृष्ठ बढ़ाने और अधिक संख्या में छपाने के लिए सुविधा नहीं है, कागज और छपाई में साधारण समय की अपेक्षा तिगुनी-चौगुनी महंगाई है। पत्रिका अब भी घाटे से चल रही है तो भी ऐसा प्रतीत होता है कि अगले वर्ष यह कठिनाइयां कम हो जाएंगी। और पत्रिका अनेक दृष्टियों से बहुत आगे बढ़ जायगी।

सन् 2001 के आरम्भ होते ही ‘अखण्ड-ज्योति’ कार्यालय में “कर्म योग विद्यालय की” स्थापना की गई थी, जिसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण के आधार पर व्यावहारिक जीवन को स्वर्ग के समान समृद्ध एवं समुन्नत बनाने की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक शिक्षा देने का आयोजन किया गया। शिक्षा की फीस, रहने का महान किराया, चारपाई, तेल, बत्ती, पुस्तक, स्टेशनरी आदि का खर्च छात्रों पर नहीं पड़ता था। विद्यार्थियों को केवल मात्र भोजन व्यय अपने पास से खर्च करना पड़ता था। शिक्षा देने का कार्य आचार्य जी के हाथ में था। इस विद्यालय में करीब 85 छात्रों ने शिक्षा पाई। जिसका बड़ा ही सुखद परिणाम रहा। इन छात्रों के जीवन में जो आशातीत परिवर्तन हुए उसकी एक स्वर से सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। यह अपने ढंग का अद्भुत विद्यालय यद्यपि इस समय विशेष कठिनाई के कारण कुछ समय के लिए स्थगित है। परन्तु निकट भविष्य में पुनः अत्यन्त सुचारु रूप से उसे चलाने की तैयारी की जा रही है।

व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने के लिए पाठकों के लिए पत्र व्यवहार द्वारा सदा ही समुचित पथ प्रदर्शन किया जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत समस्याओं के सम्बन्ध में लगभग 10000 पत्र प्रति वर्ष आते हैं। इन पत्रों के उत्तर में जो पथ-प्रदर्शन मिलता है, उससे असंख्य पाठकों का जीवन निरन्तर आनन्दमय स्थिति की ओर अग्रसर होता रहता है।

इस वर्ष कुछ उत्तम जड़ी-बूटियों के मिश्रण से दो रसायन बनाकर बिना मूल्य दिये गये जिसमें से ओज वर्धक रसायन का परिणाम बहुत ही संतोषजनक रहा। लगभग एक दर्जन पागल या अर्द्ध विक्षिप्तों के ठीक हो जाने का समाचार मिला है, अनेकों की बुद्धि, रचनाशक्ति तथा स्मरण शक्ति में असाधारण उन्नति होने की खबर है। गर्भ पोषक रसायन का परिणाम नौ मास पीछे मालूम होता है आशा है कि उसका परिणाम भी वैसा ही संतोषप्रद रहेगा जैसा ओजवर्धक का रहा है। अब यह दोनों औषधियाँ समाप्त हो गई हैं। संभवतः अगले वर्ष फिर उन्हें बनाया जा सकेगा।

उच्चकोटि के विद्वानों का अखण्ड-ज्योति में निरन्तर आना-जाना बना रहता है। इन विद्वानों की शक्तियाँ मनुष्य जाति की वर्तमान समस्याओं को सुलझाने में प्रयुक्त हों इस उद्देश्य से लम्बे विचार विनिमय होते रहते हैं। उस विचार विनिमय के फल- स्वरूप अनेकों उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखे गये हैं, जो विभिन्न स्थानों से प्रकाशित हुए हैं। पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख उन विज्ञ व्यक्तियों द्वारा उन्हीं सिद्धान्तों के प्रसार में लिखे गये हैं जिनका प्रचार अखण्ड-ज्योति करती है। इस प्रकार जहाँ जनता को अखण्ड-ज्योति द्वारा जीवन को सात्विक बनाने के लिए तैयार किया जाता है वहाँ इस मिशन द्वारा अनेकों विद्वानों को इसी दिशा में सोचने, लिखने, बोलने और कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस दिशा में भी आशातीत सफलता मिली है। पचासों विद्वान अपने-अपने क्षेत्र में अपने-अपने ढंग से सात्विकता का प्रचार करने में अपनी शक्तियों को उत्साहपूर्वक नियोजित कर रहे हैं।

इस प्रकार की एक नहीं अनेकों प्रवृत्तियों मनुष्य जाति में मनुष्यता उत्पन्न करने के लिए विभिन्न मार्गों से चलाई जाती हैं। प्रत्येक दिशा में जो सफलताएं प्राप्त होती हैं आशा से बहुत अधिक होने के कारण यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि प्रभु अपना काम आप करते हैं, उनकी कृपा ही सफलता है।

अब अगले साल के लिए विशाल कार्यक्रम हमारे सामने पड़ा है, जिनमें से कुछ मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-

(1) जीवन को समुन्नत एवं समृद्ध बनाने की नियमित शिक्षा घर-घर में पहुँचाने के लिए पत्र व्यवहार द्वारा शिक्षा देने का कोर्स लिखना, उसे छपाना और “दिव्य जीवन पत्र व्यवहार विद्यालय” की सुव्यवस्थित शिक्षा योजना चलाना। इस विद्यालय में सम्मिलित होने वाले घर रहकर भी वह ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे जो उन्हें यहाँ आकर शिक्षा प्राप्त करने पर मिलता। इस विभाग के छात्रों को पत्र व्यवहार द्वारा शंका समाधान तथा उलझी गुत्थियों को सुलझाने की पूर्ण सुविधा रहेगी।

(2) अखण्ड-ज्योति का प्रेस स्थापित करना जिससे आवश्यक साहित्य के प्रकाशन की सुविधा रहे।

(3) एक विद्यालय स्थापित करना, जिसमें सभी स्थिति और आय के छात्र साँसारिक जीवन को समृद्ध बनाने वाली “शिक्षा” और आत्मिक जीवन को आनन्दमय बनाने वाली “विद्या” को समुचित रूप से प्राप्त कर सकें।

(4) श्रीमद्भागवत गीता पर एक अत्यंत सुविस्तृत भाष्य करना। गीता में मानव जीवन की हर गुत्थी को सुलझाने योग्य पर्याप्त बीज मंत्र हैं। उन मन्त्रों को शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक आधार पर इस प्रकार उपस्थित किया जायगा कि अकेले इस ग्रन्थ को पढ़ लेने से ही संसार के समस्त शास्त्र और धर्मग्रन्थों को पढ़ने का लाभ मिल जाय। गीता का यह भाष्य लगभग दस हजार पृष्ठों का होगा। अखण्ड-ज्योति सम्पादक के अगाध ज्ञान और असाधारण स्वाध्याय का इस ग्रन्थ से पता चलेगा। यह भाष्य 18 बड़ी जिल्दों में समाप्त होगा।

(5) स्वाध्याय शिविर स्थापित करना। इस शिविर में साधु, संन्यासी, पुरोहित, पंडित, गुरु, पुजारी, महंत आदि धर्मजीवी व्यक्तियों को ‘नर की पूजा ही नारायण की पूजा’ है। इस आधार पर स्वाध्याय करा के उन्हें लोक सेवा के लिए प्रस्तुत किया जायगा। वे जगह-जगह फैल कर गौ रक्षा, धर्म रक्षा, पाठशाला, व्यायामशाला, पुस्तकालय, चिकित्सालय आदि सेवा संघों की स्थापना एवं संचालन करेंगे और इस प्रकार ईश्वर की सच्ची पूजा में प्रवृत्त होंगे।

(6) प्राकृतिक चिकित्सालय की स्थापना। जिसके द्वारा जनता को रोग निवारण करने तथा स्वास्थ्य सुधारने के लिए आवश्यक सलाह तथा चिकित्सा की सुविधा हो। रोगियों को मथुरा आकर चिकित्सा कराने की भी सुविधा रहे तथा पत्र व्यवहार द्वारा चिकित्सा का भी आयोजन हो।

आगे आने वाले समय में इन कार्यों को करने का आयोजन है। यह सब कार्य बहुत ही कठिन हैं और विशाल आयोजन की अपेक्षा रखते हैं।

साधनों का अभाव होते हुए भी हमारा विश्वास है कि परमात्मा अपने काम को आप पूरा करेगा।


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