प्रेम ही सर्वोपरि है।

October 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(महात्मा जेम्स ऐलन)

ईश्वरीय ज्ञान और निस्वार्थ प्रेम के अनुभव से प्रेम का भाव नष्ट हो जाता है, तमाम बुराइयां रफू चक्कर हो जाती हैं। और वह मनुष्य उस दिव्य आत्मा को प्राप्त कर लेता है जिसमें प्रेम, न्याय और अधिकार ही सर्वोपरि दिखलाई पड़ते है।

अपने मस्तिष्क को दृढ़ निष्पक्ष तथा उदार भावों की खान बनाइए, अपने हृदय में पवित्रता और उदारता की योग्यता लाइए, अपनी जबान को चुप रहने तथा सत्य और पवित्र भाषण के लिए तैयार कीजिए। पवित्रता और शक्ति प्राप्त करने का यही मार्ग है और अन्त में अनन्त प्रेम भी इसी तरह प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार जीवन बिताने से आप दूसरों पर विश्वास जमा सकेंगे, उनको अपने अनुकूल बनाने की कोशिश की दरकार न होगी। बिना विवाद के आप उनको सिखा सकेंगे, बिना अभिलाषा तथा चेष्टा के ही बुद्धिमान लोग आपके पास पहुँच जायेंगे, लोगों के हृदय को अनायास ही आप अपने वश में कर लेंगे क्योंकि प्रेम सर्वोपरि, सबल और विजयी होता है। प्रेम के विचार, कार्य और भाषण कभी व्यर्थ नहीं जाते।

इस बात को भली प्रकार जान लीजिए कि प्रेम विश्वव्यापी है, सर्व प्रधान है और हमारी हर एक जरूरत को पूरा करने की शक्ति रखता है। बुराइयों को छोड़ना अन्तःकरण की अशान्ति को दूर भगाता है। निस्वार्थ प्रेम में ही शान्ति है, प्रसन्नता है, अमरता है और पवित्रता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: