(रचयिता-श्री जनार्दन पाण्डे शास्त्री, सालम)
जागृति का प्रबल प्रकाश लिये, ओ भीषण पथ के पथिक! चलाचल॥
दुर्दिवसों की इन घड़ियों में।
जीवन की उलझी लड़ियों में॥
मधु सुमधुर उपहास लिये ओ, इस दुनिया के व्यथित! चलाचल॥
आगे ऊंचे पर्वत तेरे।
पीछे से है सागर घेरे॥
मन में अनुपम उल्लास लिये तू भीत न हो, मत सोच बला बल॥
आँधी आई तूफान उठा।
दुखिया का दुःखमय गान उठा॥
अन्तर में प्रेमाभास लिये तू सतत निरंतर अविरत चल॥
मग में काँटों के जाल बिछे।
यह समझ दुशाले, शाल बिछे॥
ओ न्यायी! न्याय विकाश लिये तू निज गति से कुछ शीघ्र चलाचल॥