पवित्र जीवन

October 1943

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(श्री गुरुचरण जी आर्य, बिहिया)

मानव जीवन में व्यवहृत जितने अनुष्ठान (नियम, व्रत) सत्य, पूर्ण पवित्रता स्थापित कर सकते हैं, उनमें सबसे सरल, मीठा अनुष्ठान “ईश्वर पर विश्वास कर लेना है।” मनुष्य को यदि अपने चरित्र को ऊँचा उठाना है तो ईश्वरी नियमों को साथ-साथ आत्मिक बल बढ़ाकर स्वाध्याय, संतोष और तप को भी अपना एक मात्र लक्ष्य रखना है, इसी लक्ष्य के सहारे हम अपने अन्तिम लक्ष्य और ईश्वर के आत्मस्वरूप गुणों को प्राप्त करने की क्षमता उत्पन्न कर सकेंगे।

जैसे-जैसे हमारा स्वाध्याय बढ़ेगा, हमारी आत्मा संतोष व्रतधारी बनेगी और जब संतोष का पूर्ण रूपेण समावेश हो चुकेगा तो हमारा तप पवित्र मानव का स्वरूप लोकोपकारी वृत्तियों को जीवन देकर हमें हमारे एक मात्र लक्ष्य की पूर्ति में सहायक होगा। बस यही रूप मानव जाति का विश्व शान्तिदायक पवित्र जीवन है।


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