(श्री देवराज जी विशारद, सातों जोगा)
करने योग्य कार्यों का समूह आगे खड़ा हुआ है। जीवन छोटा है और कार्य बहुत हैं। मनुष्य सोचता है कि यह करूं, वह करूं, इस कार्य में सफलता पाऊँ, उस लाभ को उठाऊँ। इस प्रकार की कल्पनाओं में बहुत सी उचित होती हैं, बहुत सी अनुचित आरम्भ किये हुए कार्यों में से बहुतों में वह सफ हो जाता है और बहुतों में असफल रहना पड़ता है। कभी-कभी बहुत से कार्य एक साथ इस प्रकार सामने आते हैं जिनमें से सर्वोत्तम का चुनाव करने में बड़ी असुविधा होती है।
आपके सामने कितने ही कार्य क्यों न हों, उनमें से किसी को कितना ही अधिक पसंद क्यों न हों, पर एक बात का विशेष रूप से ध्यान रखिए, और वह है-”कर्तव्य पालन”। अपना जो काम है, अपने ऊपर जो जिम्मेदारी है, उसे पूरी तरह से ठीक प्रकार से निबाहना चाहिए। वेद, शास्त्र, पुराण सबका एक ही मन्तव्य है कि मनुष्य को अपना कर्तव्य भले प्रकार निबाहना चाहिए, कठिनाई सहकर भी अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति करनी चाहिए।
मायाग्रस्त मनुष्य इन्द्रिय भोगों में रुचि लेने और ललचाने वाली चीजों को प्राप्त करने के लिये भरे-बुरे का, धर्म-अधर्म का विचार छोड़ देते हैं, अमीर बन सकते हैं, दौलतमन्द कहा सकते हैं, और अधिकार प्राप्त कर सकते हैं पर जीवन का सुख प्राप्त नहीं कर सकते। इतिहास में जिन पुरुषों के नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे हुए हैं और कितने वर्ष बीत जाने पर भी जिनकी विमल कीर्ति अब भी चारों ओर फैल रही है, उन्होंने एक काम प्राण-प्रिय बनाया था और वह था ‘कर्तव्य पालन’, इसीलिए हम कहते है कि पाठको- एक काम अब करो- अपने कर्तव्य को दृढ़ता के साथ पूरा करो।