दौलत का नशा

October 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री अविनाश चन्द्र खरे, सिवनी)

एक दिन मंगरु किसान खेत जोतने गया। उसके पास दो रोटियाँ थी। उसने यह सोचकर कि काम करने के बाद रोटियाँ खा लूँगा, रोटियाँ एक झाड़ी के पास रख दीं। झाड़ी के पास ही एक भूत बैठा था। भूत को भूख बहुत जोरों से सता रही थी। भूत ने रोटियाँ खा लीं।

किसान जब दोपहर को काम समाप्त करने के बाद अपनी भूख मिटाने झाड़ी के पास आया तो देखा कि रोटियाँ नदारद हैं। उसने सोचा किसी भूखे ने ही रोटियाँ खाई होंगी। यह सोचकर उसने पानी पी लिया और फिर काम में लग गया।

भूत किसान का यह कार्य देखकर अपने राजा अधर्म के पास गया और उन्हें सारा हाल सुनाया। अधर्म ने सोचा यदि संसार में इसी प्रकार स्वार्थ की भावना का लोप और संतोष की भावना बढ़ती जायेगी तो अनर्थ हो जायेगा। यह सोचकर उसने भूत से कहा कि तुम जाकर मनुष्यों में संतोष की भावना का लोप कर दो।

भूत लौटकर विचार करने लगा कि क्या यत्न किया जाए। सोचते-सोचते उसे एक उपाय सूझ गया। उसने एक किसान का रूप धर लिया और मंगरु किसान के यहाँ नौकर हो गया। उसने पहले साल मंगरु को दलदल में खेती बोने की सलाह दी। उस साल पानी बिल्कुल न गिरा पर मंगरु को लाभ ही हुआ। दूसरे वर्ष उसने एक टीले पर दाना बोने की सलाह दी। भाग्यवश उस साल बहुत जोरों का पानी बरसा और सब किसानों की फसल सड़ गई पर मंगरु को जरा भी नुकसान न हुआ। मंगरु का घर जौ के बोरों से भर गया। भूत ने मंगरु को जौ की शराब बनाना सिखा दिया। किसान अपने साथियों के साथ शराब का सेवन करने लगा।

भूत किसान की दशा देखकर अपने राजा के पास गया और उनसे विनती की-महाराज चलकर जरा उस किसान की दशा देख लीजिए। भूत और अधर्म राज किसान के घर आये। उन्होंने देखा कि सब किसान शराब पी रहे हैं, इतने में एक साधु भीतर आया। मंगरु ने उसे डाँट कर कहा- भीतर क्यों घुसे आते हो, निकल जा बाहर यहाँ कुछ न मिलेगा।

अधर्म राजा किसान की दशा देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने भूत की तारीफ करते हुए कहा- यही हाल रहा तो पृथ्वी पर अधर्म का राज्य हो जायेगा।

शराब पीकर वे लोग आपस में गाली-गलौज मार-पीट करते, और तरह-तरह के कुकर्मों निर्लज्जता पूर्वक लगे रहते।

अधर्म राज ने किसानों की दशा देखकर भूत से पूछा- तुमने इन पर कौन सा मन्त्र फूँक दिया है, देखो तो संतोष की भावना का लोप हो गया है। भूत ने कहा- महाराज यह नियम है कि जब तक मनुष्य को उसके खाने भर को भोजन मिलता जाये तब तक तो उसे संतोष रहता है पर जहाँ उसे कुछ अधिक भोजन मिला कि वह विलास वासनाओं में लिप्त हो जाता है। मैंने इसी मन्त्र का उपयोग मंगरु किसान पर किया। उसे अधिक दाना दिया और उसकी क्या दशा हुई यह आप स्वयं देख सकते हैं। इस प्रकार संसार से संतोष भावना का लोप होता गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: