गृहस्थ में ईश्वर प्राप्ति

October 1943

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(श्री मंगलचन्द जी भण्डारी, अजमेर)

एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि “क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है?” मंत्री ने उत्तर दिया- हाँ, श्रीमान् ऐसा हो सकता है। राजा ने पूछा कि यह किस प्रकार संभव है? मंत्री ने उत्तर दिया कि इसका ठीक ठीक उत्तर एक महात्मा जी दे सकते हैं जो यहाँ से गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं।

राज अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर उन महात्मा से मिलने चल दिया। कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा- महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकोड़ो को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पाँव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुँचे।

महात्मा ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा ने पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए। राजा ने कहा- भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकोड़ो को देखता आया हूँ। इसलिए मेरा ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं, रास्ते के दृश्यों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।

इस पर महात्मा ने हँसते हुए कहा- राजन् यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। मेरे श्राप से डरते हुए तुम आये उसी प्रकार ईश्वर के दण्ड से डरना चाहिए, कीड़ों को बचाते हुए चले, उसी प्रकार दुष्कर्मों से बचते हुए चलना चाहिए। रास्ते में अनेक दृश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़े। जिस सावधानी से तुम मेरे पास आये हो, उसी से जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो। राजा ठीक उत्तर पाकर संतोषपूर्वक लौट आये।


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