जो चाहो सो बन जाओ।

December 1943

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(श्री महात्मा योगानन्द जी महाराज)

तुम मनुष्य ही अपने गुण कर्म से देव, सिद्ध और अवतार हो सकते हो। तुम में जब शास्त्र कथित दिव्य गुणों का आविर्भाव होगा तब इसी शरीर से देव कहलाओगे और दिव्य गुण का फल देव शक्ति का विकास रूप ऐश्वर्य अनुभव करने से सिद्ध होंगे, जब तुम मनुष्य से देव और सिद्ध संज्ञा में पहुँच जाओगे तब तुम्हारे में अलौकिक अद्भुत सामर्थ्य आ जाएगी एवं इस सृष्टि में वैषम्य घटाने की शक्ति हो जायेगी तब तुम परमात्मा की दश कला की शक्ति विकास करने वाले देव और बारह कला के सामर्थ्य वाले सिद्ध कहलाओगे और जब तुम अधर्म का उच्छेदन करके धर्म की स्थापना करोगे, दुष्टों का दमन और शिष्टों का पालन कर जिस काल में जैसी आवश्यकता है अपनी आत्म शक्ति से सम्पादन करोगे तब बारह कला से आगे बढ़कर ईश्वर का अवतार कहलाओगे।

तुम मनुष्य ही अच्छे कर्म से देव होगे और बुरे कर्म से पशु होगे और यदि जगत में कोई महान कार्य करने की तुम्हारी प्रबल वासना होगी तो अवतार होगे। जो कार्य तुम्हारी शक्ति से असाध्य है, यदि आवश्यकता हुई तो भगवान स्वयं करेंगे, वह भी तुम्हारे मनुष्य शरीर से ही सम्पादित होगा, अतएव दैत्य, दानव, देव, सिद्ध और अवतार तुम ही होंगे।

श्रीराम भी अवतार थे और परशुराम भी अवतार थे। एक समय दोनों मिल गये परन्तु परस्पर पहचान न सकें इसलिए दोनों में झगड़ा हो गया था। इसी तरह अवतार के विषय की समस्या तुम्हारे लिए बड़ी ही विवादास्पद है, परन्तु तुम्हें मान लेना चाहिए कि भगवान के लिए कोई कार्य असाध्य या असंभव नहीं है वे स्वयं पूरा करें या औरों से करावें, ब्रह्म शक्ति को सीमाबद्ध नहीं कर देना चाहिए।


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