(श्री मुरारीलाल शर्मा, ‘सुरस’, मथुरा)।
अंग्रेजी की एक कहावत है च्च्॥शठ्ठद्गह्यह्लब् द्बह्य ह्लद्धद्ग ड्ढद्गह्यह्ल श्चशद्यद्बष्ब्ज्ज् अर्थात् ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। साम, दाम, दंड, भेद की चतुर्विधि नीतियाँ नाना प्रकार के आवरणों के साथ प्रयोग करके लोग अपना स्वार्थ साधन करते हैं। अमुक मात्रा में लाभ भी होता है और तात्कालिक इच्छा पूर्ति भी हो जाती है परन्तु लम्बी दृष्टि डालकर गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाए तो प्रतीत होता है “चाहे जिस प्रकार” प्राप्त की हुई सफलता स्थायी नहीं होती, कुछ ही समय बाद उसका पलड़ा उलट जाता है और दूसरे ही परिणाम उपस्थित होने लगते हैं। उससे एक क्षण के लिए भी आत्म संतोष नहीं मिल सकता, भले ही उससे कुछ चाँदी सोने के टुकड़े और ऐश आराम के साधन इकट्ठे हो जाएं।
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। उससे जो कुछ भी लाभ होता है वह टिकाऊ और वास्तविक होता है। सच्ची सफलता भी ईमानदारों को ही मिलती है। बेईमान आदमियों का कारोबार चार दिन चमक कर अस्त हो जाता है परन्तु ईमानदारी का प्रकाश उस व्यक्ति के मरने के बाद भी बहुत समय तक फैला रहता है। बेशक ईमानदारी के आधार पर देर में प्राप्त होता है और उचित मात्रा में प्राप्त होता है, परन्तु वह प्राप्त हुई चीज इतनी आनंद दायक और आत्म संतोष देने वाली होती है कि उसके ऊपर कुबेर का खजाना और इन्द्र का वैभव निछावर किया जा सकता है।
हमें अपना व्यवहार ईमानदारी से परिपूर्ण बनाना चाहिए। घर और बाहर के सारे कारोबारों में ईमानदारी का समावेश करना चाहिए, इससे सच्चे रूप से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं क्योंकि ईमानदारी ही सर्वोत्तम नीति है।