(स्वामी रामतीर्थ)
यदि एक टन या अधिक चारा हाथी की पीठ पर लादा जाए तो उस बोझ को वह पशु जरूर उठा लेता है पर कठिनता से और बड़ा जोर लगाकर वह उस बुझे को ढोता है। यह बोझा हाथी के लिये मुसीबत और परेशानी का सामान हो जाता है। किन्तु वही घास चारा जब हाथी खाता है और उसे बचाकर आत्मसात करके अपनी देह में ले चलता है, तब वही बोझा उसके लिये बल और शक्ति का स्त्रोत बन जाता है।
इसलिए वेदाँत आपसे कहता है कि दुनिया के सब बुझे अपने कंधों पर मत ले चलिये। यदि तुम उनको अपने सिर पर ले चलोगे तो उस बोझ से तुम्हारी गर्दन टूट जायेगी। यदि तुम उन्हें पचा लोगे, उन्हें अपना बना लोगे, उन्हें अपना ही स्वरूप अनुसरण कर लोगे, तो तुम जल्दी-जल्दी बढ़ोगे, तुम्हारी गति मंद पड़ने के बदले अग्रसर होती जायेगी।
जब आप वेदाँत को अनुभव करते हैं, तब ईश्वर को आप महान और सर्वव्यापी देखेंगे। ईश्वर ही आप खाते हैं, ईश्वर ही आप पीते हैं, ईश्वर आप में वास करता है। जब आप ईश्वर का चारों ओर अनुभव करेंगे तब आपको वह दिखाई देगा। आपका भोजन ईश्वर के रूप में बदल जायेगा। वेदाँती के नेत्र संसार की हरेक वस्तु को परमेश्वरमय देखते हैं। हरेक वस्तु उसे प्यारी होती है। क्योंकि परमेश्वर है जब यह भावनाएं मन में घर करती हैं तो संसार की वस्तुएं तथा घटनाएं अप्रिय नहीं लगतीं, भारी या बोझल प्रतीत नहीं होतीं, वरन् हाथी के चारे की तरह पचकर सब प्रकार सुखदायक हो जाती हैं।