मनुष्य को चाहिए कि दूसरों को शिक्षा दे, पढ़ावें और उनकी अशुभ बातों को दूर करे। ऐसा कर्तव्य निष्ठ पुरुष, सज्जनों को प्रिय लगता है और दुर्जनों को अप्रिय।
- पंडित बग्गो
पापी को मित्र न बनाओ और न अधर्म पुरुष को। कल्याण करने वाले को मित्र बनाओ और श्रेष्ठ पुरुषों के साथ रहा करो।
- पंडित बग्गो
जैसे विशाल पर्वत हवा के झोंकों से हिलते डुलते नहीं, वैसे ही बुद्धिमान लोग निन्दा स्तुति के कारण अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होते।
- पंडित बग्गो
उन लोगों को यह संसार बन्धन रूप नहीं होता जो पृथ्वी के समान संतोषी, खंभे के समान सुस्थिर और झील के समान निर्मल हैं।
- अरहन्त बग्गो
न नग्न रहने से, न जटा से, न भस्म लगाने से, न उपवास से, न भूमि पर लेटने से, न भिन्न भिन्न आसनों से वह पुरुष पवित्र हो सकता है जो तृष्णा के बन्धनों से नहीं छूटा है।
- दण्ड बग्गो
जो सादा कपड़े पहनता हुआ भी दान्त है, इन्द्रिय दमन करता है, नियमित रहता है, ब्रह्मचारी है तथा किसी प्राणी को सताता नहीं, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, वही भिक्षु है।
- दण्ड बग्गो
आत्मा ही आत्मा का सहायक है। दूसरा और भला कौन सहायक हो सकता है? आत्म संयम से मनुष्य दुर्लभ सहायता को प्राप्त कर लेता है।
- अत्त बग्गो
तुम अपने किये पापों से अपने को ही गिराते हो। अपने ही पुण्य से शुद्ध होते हो, शुद्धि और अशुद्धि अपनी ही हैं। दूसरा कोई किसी को शुद्ध नहीं कर सकता।
- अत्त बग्गो