बेशक पाश्चात्य देशों के निवासी बड़े श्रमशील हैं, वे समय का महत्व जानते हैं और एक एक क्षण के सदुपयोग का ध्यान रखते है, इसका तात्पर्य यह नहीं कि वे कमाई में ऐसे चिपट जाते हैं कि जीवन रूखा या शुष्क हो जाय। दिन निकलने से लेकर रात के बारह बजे तक सेठ लोगों की तरह वे दुकान की गद्दी पर नहीं पड़े रहते और न निठल्लों की तरह ताश गंजा खेलने या बेकार गाल बजाते फिरने में अपना और दूसरों का समय बरबाद करते फिरते हैं। उनके सब काम नियमबद्ध होते हैं, जिस कार्य के लिए जितना समय नियत है उस कार्य में उतना ही समय लगावेंगे। बड़े बड़े जिम्मेदारी के उच्च पदों पर भी काम करने वाले वे लोग पुस्तकें पढ़ने, मित्रों से मिलने, खेलने, मनोरंजन करने, लेख लिखने के लिए समय निकालते हैं, जीवन को सरस बनाये रखने का भी नियम रखते हैं, साथ ही पूरे समय तक राजकीय, व्यापारिक या अन्य प्रधान कार्यक्रमों में जुटे रहते हैं, समय के सदुपयोग के कारण उस समाज में साधारण श्रेणी के व्यक्ति बहुत ज्ञान, धन, मान का उपार्जन कर लेते हैं और स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन बिताते हैं।
हम लोग यूरोपियन लोगों की भद्दी नकल बनाना सीखे हैं, फैशन बनाने में, विदेशी भाषा बोलने में उनसे आगे बढ़ जाते हैं पर अच्छी आदतों की हवा तक भी ग्रहण नहीं करते। जोंक गाय के थन से चिपट कर दूध को नहीं लेती वरन् खून ही पीती है। हम लोग फैशन और मिज़ाज से आधे साहब बनकर अपने को फिजूल खर्च और दुर्गुणी बना लेते हैं पर उनके सद्गुणों की नकल करना बिल्कुल भूल जाते हैं।