प्रभु! आपकी इच्छा पूर्ण हो।

December 1943

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कहते हैं कि वर्तमान समय उन्नति का समय है। आँखों से दिखाई पड़ने वाली बहुत सी दिशाओं में इन दिनों बेशक काफी तरक्की हुई है। विज्ञान के बल से तरह तरह की विस्मयजनक चीजों से दंशों दिशाएं पट गई हैं, ऐसी ऐसी अद्भुत वस्तुएं हमारे चारों ओर फैली हुई हैं जिन्हें देखकर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है। सिद्धान्त है कि “जब एक टीला बनाया जाता है तो दूसरी जगह उतना ही गड्ढा हो जाता है।” आत्मिक उन्नति का रक्त पान करती हुई, उसकी गरदन मरोड़ती हुई यह भौतिक उन्नति आगे बढ़ी है। ऐश, आराम, चमक दमक, सुभीता सहूलियत, तरकीब तरीके बढ़े हैं पर उनके साथ साथ जीवन का सारा सुख काफूर हो गया है। प्राचीन समय में अल्प साधनों के होते हुए भी मनुष्य बहुत सुखी था, पर आज जितनी ही सुविधाएं बढ़ती जाती हैं उतनी ही अशान्ति और अतृप्तता का सामना उसे करना पड़ रहा है। ‘ सुख’ मनुष्य का परम प्रिय पदार्थ है। इसे प्राप्त करने के लिए वह सदैव प्रयत्नशील रहता है। पूर्व काल में आत्मावलम्बन उसे प्राप्त करने का मार्ग था, आज आत्मा और आध्यात्म तत्वों पर चर्चा करने वाले मूर्ख समझे जाते हैं और हर दिशा में वैज्ञानिक पद्धति की प्रतिष्ठा की जाती है। जीवन को आनन्दमय बनाने के लिए भी भौतिक विज्ञान का आश्रय लिया जाता है। भौतिक विज्ञान के आधार पर जीवन का जो विश्लेषण हुआ है उसके आधार पर यह ठहराया गया कि-”मनुष्य नाशवान सत्ता है, शरीर के साथ ही उसकी सत्ता मिट जाती है और परलोक या पुनर्जन्म की बात मिथ्या है। इसलिए ऐश आराम भोगने में कमी नहीं करनी चाहिए। उन्हें प्राप्त करने के लिए हर एक उपाय काम में लाना चाहिए। बड़ी मछली जैसे छोटी मछली को खा जाती है उसी प्रकार छल से बल से कमजोरों का शोषण करके अपने को और अपने साथियों को मौज में रखना चाहिए।’ आज का विज्ञान खुले आम यही शिक्षा देता है।

कहते हैं कि “शैतान भी कभी कभी खुदा का नाम लेकर काम चलाता है।” लोग धर्म की, मनुष्यता की, सदाचार का, ईश्वर की दुहाई देते सुने जाते हैं परन्तु आमतौर से ‘छल से बल से मौज करने’ का उद्देश्य हृदयों के भीतरी कोनों तक धँस गया है। देखा जाता है कि छल, झूठ, पाखंड, निष्ठुरता, खुदगर्जी, कपट, शोषण, अपहरण बेईमानी की चारों ओर तूती बोल रही है। बदमाशिया ऐसी चमचमाती हुई कलईदार पॉलिसी के साथ हो रही हैं कि इस बौद्धिक विज्ञान के चकाचौंध में असलियत का पता लगाना कठिन हो जाता है। कुछ ठगते हैं कुछ ठगे जाते हैं। कुछ सताते हैं कुछ सताये जाते हैं। कुछ चमकते हैं कुछ दबाये जाते हैं। इस प्रकार तामसी असमानता की, असत्य की विजय पताका फहराती जाती है, कलयुग अपनी विजय दुँदुभि बजाकर आकाश को गुँजित कर रहा है। इस शैतानी सम्मोहन पाश में बँधी हुई मानव जाति पग पग पर इतने कष्ट उठा रही है जिनका कोई हिसाब नहीं। पाप और पारा पचता नहीं। वर्तमान सभ्यता के कलियुगी बहकावे में आकर मनुष्य जाति ने ऐश और अनीति का आश्रय लिया है, वह पारा रोम रोम में से फूट रहा है। शैतान के अट्टहास के साथ मनुष्य जाति का आर्त करुण क्रन्दन भी गुँजित हो रहा है। कैसी ही आज की दिल दहला देने और रोमाँच खड़े कर देने वाली भयंकर घड़ी!!

आस्तिकों का विश्वास है कि “ जब धर्म की हानि और अधर्म का अभ्युत्थान होता है तब साधुता का परित्राण करने और पापों का विनाश करने के लिए ईश्वरीय सत्ता अवतीर्ण होती है।” नास्तिकों का भी ऐसा ही विश्वास है, वे मानते हैं कि -” अतिक्रमण की प्रतिक्रिया होती है” अर्थात् जिस बात की अति हो जाती है उसका विरोध उत्पन्न है। जब जलती हुई दुपहरी का मान मर्दन करते हुये प्रकृति के नियम कुछ ही देर बाद शीतल चाँदनी प्रकट कर देते हैं तो कोई कारण नहीं कि वर्तमान समय की बढ़ी हुई दुर्भावनाएं चूर चूर होकर सतयुगी सद्भावनाओं की स्थापना न हो, भ्रातृ भाव, सरलता, उदारता, त्याग, विवेक, संतोष, सच्चाई, ईमानदारी, दया, प्रभृत सद्गुणों का प्रसार न हो।

हम कट्टर आस्तिक हैं। ईश्वर पर हमारा अटल विश्वास है, दिन में जगने और रात में सोने के समय जो भी कार्य हमारे शरीर से होते हैं सब ईश्वर के निमित्त, ईश्वर की पूजा के निमित्त होते हैं। जीवन के भूतकाल का एक एक पल हमने प्रभु की अनन्य उपासना में लगाने का प्रयत्न किया है। जब भी हमने अपनी विनम्र साधना के साथ प्रभु की वाणी को सुनने का प्रयास किया है तथा अपने सच्चे स्नेही तपस्वी महात्माओं का अभिमत जाना है तब ऐसा ही प्रतीत हुआ है कि अब वह समय आ गया जब कि इस हद दर्जे तक बढ़े हुए असत्य का अन्त होना चाहिए और उसके स्थान पर सत्य की, सात्विकी वृत्तियोँ की प्रतिष्ठापना होनी चाहिए।

धर्म स्थापना की ईश्वरीय इच्छा के अनेक प्रमाण मिलते हैं। हम देखते हैं कि नवयुग निर्माण के लिए सत्य, समानता, विकास और सदाचार का प्रसार करने के लिए अपने अपने ढंग से हजारों संस्थाएं लाखों जीवन और करोड़ों अन्तःकरण प्रवृत्त हैं। इनमें से जो सच्चे हैं उनका उत्साह, मार्ग और कार्य दिन दिन अधिक ऊँचा चढ़ता जाता है। एक अदृश्य लोक से कोई ऐसी प्रेरणा हो रही है जिससे प्रेरित होकर अधर्म के मिटने और धर्म के फैलने के असंख्यों जड़ चैतन्य साधन उपस्थित हो रहे हैं और होते जा रहे हैं।

ऐसा ही एक संस्थान ‘अखण्ड ज्योति’ है। इसकी स्थापना एक बहुत ही साधारण शक्ति वाले व्यक्ति के हाथों हुई और उसी के दुर्बल कंधों पर इसके संचालकत्व का भार पड़ा। गीता का मधुर वेणु नाद करके जागृत गोप आत्माओं का अमृत रस पिलाने वाले भगवान कृष्ण की क्रीड़ा भूमि मथुरा से प्रभु की वही स्वर लहरी इस पत्रिका में पुनः सुनाई पड़ रही है। उसी के अधरामृत को यह बाँस की अकिंचन बांसुरी अपने पोले अन्तराल में बजने दे रही है। सत्य का, प्रेम का, न्याय का, अमर संदेश आज की क्रन्दन करती हुई मनुष्य जाति को देकर उसे सत् की, चित्त की, आनन्द की साक्षात् प्रतिमा बनाने का अथक परिश्रम कर रही है।

इस अंक के साथ अखण्ड ज्योति का चौथा वर्ष समाप्त हो रहा है। अगले अंक के साथ वह पाँचवें वर्ष में पदार्पण करेगी। इस छोटे से काल में धर्म प्रतिष्ठा का जितना श्रेय प्रभु ने इस नगण्य संस्थान के ऊपर पटक दिया है वह आश्चर्यजनक है। इस सिनेमा और शौकीनी के युग में इतने अधिक व्यक्तियों ने उसे पसन्द किया जिसकी कोई आशा न थी, अखण्ड ज्योति की ग्राहक संख्या उत्साह बढ़ाने वाली है। इस वर्ष तो गज को ग्राह के फंदे से छुड़ाने वाली घटना बिल्कुल चरितार्थ हो गई। सन् 43 के आरम्भ में मथुरा के बाजार से कागज लुप्त हो गया, बाहर से लाने में बड़ी अड़चनें थीं, ऐसी दशा में एक बार यह नाव डूबती हुई प्रतीत हुई। कागज न हो तो पत्रिका कपड़ों पर तो छापी नहीं जा सकती थी, आखिर प्रभु ने एक मार्ग निकाला। हाथ का कागज बनाने की मृत प्रायः दस्ताका जी उठी और उससे भौंड़ा, टेढ़ा, काना कुबड़ा कागज बनने लगा, इस पर छपाई अच्छी नहीं हुई, कुछ पृष्ठ भी घटे, तो भी कितने आश्चर्य की बात है कि किसी एक भी पाठक ने इन त्रुटियों की शिकायत नहीं की वरन् ताड़पत्र और भोजपत्र पर लिखे आर्ष ग्रन्थों के समान उस पर श्रद्धा रखते हुए आर्थिक सहायता दी, और इस ज्योति को यथावत् ज्वलित रखा। प्रभु को कितने हृदयों में इसके लिए कैसी कैसी प्रेरणाएं करनी पड़ी होंगी, वह श्रम हमारी दृष्टि में गज को ग्राह से बचाने के ही समान है।

जिनका अखण्ड ज्योति से निकट संपर्क है वे जानते हैं कि यह कागज छापकर बेचने का व्यापार नहीं वरन् मानवीय अन्तरात्मा की सात्विक वृत्तियों को जगाने की एक क्रियात्मक प्रयोगशाला है। जिसमें असंख्य व्यक्तियों के जीवन को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा, उत्साह, साहस और बल दिया जाता है। एक दो नहीं, हजारों उदाहरण ऐसे मिल सकते हैं जिनमें लोगों की कायापलट हो गई, पुरानी हरकतें छोड़कर उन्होंने सीधे मार्ग का रास्ता पकड़ा और निभाया। इस चौथे वर्ष के अन्त में हम इतना ही कहना चाहते हैं कि पाठकों, प्रेमियों, शुभ काँक्षियों, सहायकों, सहयोगियों, महात्माओं तथा परमात्मा की कृपा से अखण्ड ज्योति संस्थान द्वारा विभिन्न योनि से जितना धर्म प्रचार कार्य हुआ है, वह उत्साह वर्धक, संतोषजनक तथा आशाप्रद है। हमारा यह विश्वास दिन दिन दृढ़ होता जाता है कि इस केन्द्र द्वारा जो मानव जाति को सुखी बनाने के लिए ज्ञान किया जा रहा है, प्रभु की प्रेरणा, कृपा और क्रिया से वह पूर्ण सफल होगा। प्रभु! आपकी इच्छा पूर्ण हो।


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