(महात्मा जेम्स ऐलन)
मनुष्य ऐसे असंख्य सुधार करना चाहता है, जिनमें भीतरी त्याग का नाम भी नहीं होता। हर एक आदमी यही सोचता है कि मेरे सुधारों से संसार सदैव के लिए सुधर जायेगा परन्तु असल बात तो यह है कि इस तरह काम नहीं चल सकता, स्थायी सुधार नहीं हो सकता। सुधार तो उसी को कहा जा सकता है जो मनुष्य के हृदय को सुधारने का यत्न करता हो, क्योंकि हर एक बुराई उसी जगह से पैदा होती है। जब संसार स्वार्थ तथा कलह को तिलाँजलि देकर पवित्र प्रेम का पाठ पढ़ लेगा तब उसमें सर्वव्यापी आनन्द और सुख का सतयुग प्रवेश करेगा।
धनाढय़ों का गरीबों से घृणा करना और गरीबों का अमीरों को तुच्छ समझना बन्द होने दीजिए। लोभी को त्याग और कामातुर को पवित्रता का पाठ सीखने दीजिए, अनुदार हृदय वालों को क्षमा का पाठ सीखने दीजिए, द्वेषियों को दूसरों के साथ सुख मनाना और झूठी शिकायत करने वालों को अपने आचरण पर लज्जित होना सिखला दीजिए। अगर सभी स्त्री-पुरुष इसी मार्ग पर चलने लगें तो फिर क्या पूछना है, वह सतयुग का समय बिल्कुल निकट हो जाए। इसलिए जो अपने हृदय को पवित्र बनाता है वही दुनिया का सबसे अधिक परोपकारी है।
अपने ऊपर विजय प्राप्त करने और अपने को सुव्यवस्थित बनाने में निरन्तर संलग्न रहने से ही मनुष्य सच्चा ज्ञान और सच्चा प्रेम प्राप्त कर सकता है, केवल पवित्र आत्मा वालों को ही परमात्मा के दर्शन होते हैं।