आत्म साधना से विश्व कल्याण

December 1943

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(योगी अरविन्द घोष)

धर्म द्वारा ही भारत की नवीन जाति गौरव प्राप्त करेगी। योग ही धर्म प्राप्ति की मुख्य प्रणाली है। योग सिद्ध व्यक्ति की शक्ति अपने को गुणान्वित करके आत्म परिधि विस्तृत करेगी। बहुत से बाजों के स्वरों के मिलने से जिस प्रकार एक तान की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार बहुत से व्यक्तियों की ऐक्य स्थापना में सुसामंजस्य पूर्ण नवीन राज्य तैयार होगा। वह राज्य किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि आत्मा की ऐक्य मूर्ति का देव समाज का होगा।

आत्मा को बिना जाने या बिना पाये जो नवीन समाज गठन का स्वप्न देखा जा रहा है वह सफल नहीं होगा। आत्मा को लेकर ही मानव जीवन है। जीवन के आडम्बर के भीतर सत्य वस्तु प्रच्छन्न हो गई है। ज्ञान का विकास होने पर आत्म लाभ होगा, इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है, यह शिक्षा योग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। योग के पथ पर अग्रसर होने पर जो समृद्धि और सम्पत्ति उद्भूत होगी, उसी का बाहरी रूप साम्राज्य है। अपने को पा जाने और जान लेने से स्वराज्य प्राप्त होता है, स्वराज्य प्राप्त होने के बाद साम्राज्य की रचना होती है।

बुद्धि मानव जीवन का श्रेष्ठ तत्व है। इसी बुद्धि द्वारा देह राज्य पैदा होता है और उसका काम चलता है। बुद्धि ने अपने हिरण्मयं पात्र द्वारा जो करोड़ों सूर्यों के समान अन्तरात्माओं को आवृत कर रखा है उन्हें समेटना होगा, तभी ज्ञान सूर्य की किरणों के प्रभाव से देह राज्य का नवीन रूप पैदा होगा।


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