हजरत उमर ने एक युद्ध जीता। वहाँ की व्यवस्था सही करने के लिए उनका पहुँचना आवश्यक था। सो वे कुछ साथियों सहित उस यात्रा पर निकल पड़े। तीन आदमियों के पीछे एक ऊँट भी साथ था। दो पीठ पर सवार होते, तीसरा नकेल पकड़ कर आगे चलता।
सिलसिला बराबर चलता रहा और वह नगर आ गया, जहाँ उन्हें पहुँचना था। प्रजा स्वागत की तैयारी किये बैठी थी। एक सवार ने खुद उतर पड़ने और हजरत को सवार होने के लिए कहा।
जवाब था-हम सब की हैसियत एक है। नियत अनुशासन के निबाहने में ही हमारी शान है। हजरत ऊँट की नकेल पकड़े हुए ही शहर में घुसे। उनके इस शिष्ट व्यवहार पर सभी प्रजाजन पुलकित हो उठे। उन्हें मिलने वाले अपरिमित सम्मान का यही कारण था। दूसरों के प्रति सद्भाव-सम्मान की प्रतिक्रिया अनेकों गुनी फलित होकर मिलती है।
*समाप्त*