पत्ता पीला पड़ा और झड़कर नीचे गिर पड़ा। देखने वालों ने उसे पत्ते का दोष और दुर्भाग्य बताया। पर जानने वालों ने जाना कि इस पतन को पूरे वृक्ष का परोक्ष समर्थन प्राप्त था। यदि वृक्ष के रसवाही तन्तु समर्थ रहे होते, तो पत्ते के जोड़ ढीले न पड़ते और वह असमय इस प्रकार अपने परिवार से विमुख होकर धूल न चाट रहा होता। पर पूरे पेड़ में घुसी विकृति को दोष कौन दे, पत्ते को ही कोस देना पर्याप्त मान लिया गया- यही जग की रीति है। पारिवारिकता में किसी के उत्थान-पतन के लिए सारा तंत्र श्रेय अथवा दोष का भागीदार होता है।
किसी स्थान पर विशाल भवन का निर्माण हो रहा था। निर्माण-स्थल के समीप ही लगा हुआ था ईंटों का एक ढेर। ईंटों के ढेर में जमी ईंटों ने कहा- गगनचुम्बी अट्टालिकाओं का निर्माण हमारे अस्तित्व पर ही आधारित है। भवन जब बनकर तैयार हो जाएगा, निस्सन्देह उसके निर्माण का श्रेय मुझे ही मिलेगा।
मिट्टी-गारे ने ईंटों की यह गर्व भरी बातें सुनीं, तो रहा न गया। वह बोली-तुम झूठ बोलती हो। क्या तुम नहीं जानती कि एक सूत्र में पिरोकर, ईंट से ईंट जोड़कर- इस भवन को सुदृढ़ बनाने का श्रेय तो हमें ही है। मेरे अभाव में तो तुम्हारे ये ढेर एक ठोकर मारकर ही गिरा दिये जा सकते हैं।
किवाड़ और खिड़कियों ने इसका प्रतिवाद किया-यह तो सभी जानते हैं कि तुम ईंटों को जोड़-जोड़ कर दीवारें खड़ी करती हो, पर यदि उस मकान में खिड़की-दरवाजे न रहेंगे, तो पूछेगा कौन? उसमें रहने के लिए जाएगा कौन? शिल्पी जो इन सब की बातों को चुपचाप सुन रहा था, अब बोला-आप लोगों में भले ही कितना भी सहयोग क्यों न हो, परन्तु जब तक मेरा हाथ न लगे, सब अपने-अपने स्थान पर ही पड़े रहेंगे।
अब भवन की बारी थी- भवन ने जो कुछ कहा- वह एक स्वीकार्य सत्य था। भवन बोला- सबका महत्व है, परन्तु उससे भी महत्वपूर्ण है- सहअस्तित्व। सहअस्तित्व के अभाव में किसी का व्यक्तिगत कोई महत्व नहीं है, इसलिए आपको अपना झूठा अभिमान छोड़कर सहयोग का महत्व समझना चाहिए।
इस तथ्य को न समझने वाले यह भूलते हैं कि सारा मनुष्य समुदाय एक परिवार की तरह है, उसमें सबका समान अस्तित्व और महत्व है, परस्पर कल्याण का ध्यान रखने में ही भलाई है।