एक कुएँ पर चार पनिहारिनें पानी भरने गईं। बारी-बारी रस्सी में घड़ा बाँधकर कुएँ में उतारतीं और पानी खींचती । एक व्यस्त होती, तो तीन खाली रहतीं। इस बीच उनमें कुछ वार्ता छिड़ गई। सभी अपने-अपने लड़कों के गुणों की प्रशंसा करने लगीं। एक ने कहा-मेरे लड़के का गला ऐसा मीठा है कि किसी राजदरबार में उसे मान मिलेगा। दूसरे ने कहा मेरे लड़के ने अपना शरीर ऐसा गठीला बना लिया है कि बड़ा होने पर दंगल में पहलवानों को पछाड़ेगा । तीसरे ने कहा मेरा बेटा ऐसा बुद्धिमान है कि सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता है। चौथी सिर नीचे किए खड़ी थी। उसने इतना ही कहा -मेरा लड़का गाँव के और बच्चों की तरह साधारण ही है। इतने में चारों बच्चे स्कूल की छुट्टी होते ही घर चल पड़े। रास्ता कुएँ के पास होकर ही था। एक गाता आ रहा था। दूसरा उछलता। तीसरे के हाथ में खुली पुस्तक थी। सबूत भी उनकी विशेषता का हाथोंहाथ मिल गया। चौथी का लड़का आया, तो उसने चारों के चरण छूकर प्रणाम किया और अपनी माता का पानी से भरा घड़ा सिर पर लेकर घर की ओर चल पड़ा। कुएँ के पास एक वयोवृद्ध बैठा हुआ था। उसने चारों बहुओं को रोककर कहा। यह चौथा लड़का सबसे अच्छा है। इसका शिष्टाचार देखो। किसी का भी भविष्य उसका शिष्टाचार बनाता है।