यह संसार एक विचित्र रंगमंच है, जहाँ तरह-तरह के अजूबे देखने को मिलते हैं। वैज्ञानिक प्रयास करते हैं कि हर दृश्यमान वस्तु या घटनाक्रम का वे कारण बता सकें, फिर भी अनेक रहस्यों का समाधान वह अपनी तर्कबुद्धि से देने में असमर्थ होते हैं। ऐसी विचित्रताएँ हमें यह सोचने पर विवश करती हैं कि अविज्ञात क्रिया-कलापों एवं दृश्यों से भरी यह दुनिया आखिर किसने बनायी?
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सन् 1914 में एक जर्मन जासूस पकड़ा गया। उसका नाम पीटर कार्पन था। फ्राँसीसियों ने इस गिरफ्तारी को एकदम गुप्त रखा। इसके साथ एक दूसरी चाल चली, पीटर के नाम से झूठे समाचार जर्मनी भेजते रहे। जर्मनी से जो उसके नाम का वेतन आता, उसे जाली दस्तखत कर स्वयं रख लेते। सन् 1917 में पीटर को मौका मिला और वह जेल से भाग लिया। दूसरी ओर पीटर नाम से आने वाला पैसा जब बहुत अधिक इकट्ठा हो गया तो फ्रांसीसी गुप्तचर विभाग ने उससे एक गाड़ी खरीदी । संयोग की बात कि शहर में घूमते समय एक व्यक्ति उस गाड़ी की चपेट में आ गया और मर गया। मृतक की खोजबीन की गई, तो पता चला कि वह और कोई नहीं, जेल से भागा जासूस पीटर था। प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन का एक टोही वायुयान मोर्चे का सर्वेक्षण कर रहा था। उसके चालक और सर्वेक्षणकर्ता शत्रु की मशीनगन के शिकार हुए और जहाज में ही मर गये। इतने पर भी वायुयान दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ। वह घण्टों दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ। वह घण्टों आसमान में बेतुके चक्कर काटता रहा और अन्त में ईंधन चुक जाने पर शान्ति के समय समतल भूमि पर उतर आया। आखिर वह कौन-सी शक्ति थी, जो उस जड़ यान का संचालन कर रही थी? विज्ञानवेत्ता इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दे सके।
जापान के सासवो नगर का एक नागरिक त्सोको नियमित रूप से त्रिपिटिक का पाठ करता था। जिस पृष्ठ पर पाठ छोड़ता, उसमें एक हरी पत्ती का विराम संकेत लगा देता। आश्चर्य की बात तो यह है कि वह जीवनभर उसी एक पत्ती का प्रयोग करता रहा और पत्ती यथावत् हरी बनी रही। 80 वर्ष की अवस्था में सन् 1975 में जिस दिन उसकी मृत्यु हुई, उस दिन देखने पर वह पत्ती भी सूखी पायी कई । वनस्पति शास्त्र के नियमों की अवहेलना करते हुए वह किस प्रकार इतने लम्बे काल तक हरी बनी रही, इसका कोई विज्ञानसम्मत उत्तर नहीं ढूँढ़ा जा सका।
आस्ट्रेलिया में एक चलती-फिरती पहाड़ी है। यह ‘ग्रामसीन’ के नाम से प्रसिद्ध है और पर्यटकों के लिए एक मनोरंजन पार्क की तरह है। वह अपना स्थान बदलती रहती हैं। कारण यह बताया जाता है कि उसकी तली में 100 फुट मोटी नमक की एक चट्टान है। पहाड़ी की जड़ उसी पर टिकी है। नीचे का नमक नमी, गर्मी और सर्दी से प्रभावित होकर उथल-पुथल करता रहता है और पहाड़ी को इधर-उधर खींचता-धकेलता रहता है।
आस्ट्रिया का टौर्न पर्वत का नोड्रन जलप्रपात संसार के प्राकृतिक आश्चर्यों में से एक है। प्रतिदिन तीसरे पहर ठीक साढ़े तीन बजे उसके ऊपर एक इन्द्रधनुष उदय होता है। इसका समय इतना निश्चित है कि लोग उससे अपनी घड़ी मिलाते और टाइम सही करते हैं।
ब्राजील के एक नगर वेलम टडोपरा में दोपहर 2 से 4 बजे तक पूरे दो घंटे नियमित रूप से वर्षा होती है। इसमें व्यतिरेक कदाचित् ही कभी होता है। उस क्षेत्र के निवासी इन दो घंटों में मध्याह्न अवकाश मनाते हैं।
गर्म और ठण्डे जल के झरने संसार में अनेक स्थानों पर पाये जाते हैं, किंतु इटली के आर्मिया क्षेत्र में अपने ढंग का एक विचित्र निर्झर है। उसमें सर्दी के दिनों गर्म पानी निकलता है और भाप के बादल उठते हैं, जबकि गर्मी के मौसम में उसका पानी बर्फ जैसा ठण्डा बना रहता है।
जिरिनाज पर्वत इण्डोनेशिया में स्थित एक शान्त ज्वालामुखी है। कभी वह गर्म लावा उगलता था, पर अब वैसा कुछ नहीं है। फिर भी उसका चुम्बकीय चक्रवात अभी भी विद्यमान है। एक छोटा-सा बादल उसके गतिचक्र में इस प्रकार फँसा है कि वह परिधि से बाहर आ नहीं पाता । उस शिखर के ऊपर ही मँडराता और चक्र की तरह अनवरत घूमता रहता है। इसका एक कारण ज्वालामुखी की नोंक ने निकलने वाली गर्म हवा का कोई प्रत्यावर्तन ही समझा जाता है।
दक्षिण कोरिया में एविग्नान के निकट एक ठण्डे पानी का झरना है। उसे वाडक्लुर्स का स्रोत कहते हैं। समीप में ही नदी बहती है। नदी के दूसरे तट पर एक अंजीर का पेड़ है। बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के नदी का जलस्तर मार्च माह में हर वर्ष अपने आप बढ़ जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति आ जाती है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि नदी का जलप्रवाह उल्टी दिशा में ऊँचाई पर स्थिति अंजीर के पेड़ की ओर बढ़ने लगता है और पेड़ की जड़ को स्पर्श करके वापस लौट जाता है। इस घटना की पुनरावृत्ति हर वर्ष नियत समय पर होती है। वैज्ञानिक लम्बे समय से इसका कारण तलाशते रहे हैं, पर यह अब भी अविज्ञात रहस्य बना हुआ हैं। वहाँ की लोककथाओं में ऐसा उल्लेख मिलता है कि वृक्ष यक्ष है और नदी कोई अप्सरा, जो किसी देवता के कोपभाजन के कारण जड़ योनि में परिवर्तित हो गये। । अभिशाप में थोड़ी छूट यह दी गई कि वे मार्च माह के एक निश्चित दिन मिल सकते हैं। तभी से दोनों का यह विचित्र मिलन चलता आ रहा है। किंवदंती कहाँ तक सत्य है , नहीं मालूम ,पर इस विलक्षण दृश्य को देखने के लिए प्रतिवर्ष वहाँ भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
इन प्राकृतिक आश्चर्यों के अतिरिक्त वनस्पति जगत में भी ऐसा कितनी ही विलक्षणताएँ हैं, जिन्हें इसी स्तर का कहा जा सकता है।
महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में अंजिष्ठा मार्ग पर ‘पहुर’ नामक एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ से सेदुणी जाने वाले कच्ची सड़क पर मील दूर ‘सोप’ गाँव अवस्थित है, इस गाँव में एक अद्भुत नीम का पेड़ है। इसके प्रत्येक डाल के पत्ते कड़वे हैं किंतु उसमें एक डाल ऐसी है, जिसके पत्तों का स्वाद अत्यन्त मीठा है। कहते हैं कि कड़ोवा महाराज नाम के एक सिद्ध सन्त ने ईश्वर के अस्तित्व और उसकी शक्ति का परिचय देने के लिए ऐसा किया था।
हिन्द महासागर के रियूनियम द्वीप में कैक्टस जाति का एक विचित्र पौधा पाया जाता है। वह अपने जीवन के अन्तिम दिनों में प्रायः पचास वर्ष बाद एक बार ही फूलता है। इसके बाद उसके जीवन का अन्त हो जाता है।
बाई डाँगों अफ्रीका के गाँव मवाई में एक प्रकार का वृक्ष पाया जाता है, जो वनस्पति विज्ञान के नियमों का उल्लंघन कर वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ हैं। इस वृक्ष की जड़ें कील या चूलनुमा होती है। जब कभी तूफान आते हैं, तो वृक्ष लगभग 360 डिग्री कोण से घूम जाता है। इसकी सम्पूर्ण वैज्ञानिक व्याख्या कर पाने में विज्ञानवेत्ता अब तक असफल रहें हैं। नादिया (पं. बंगाल) जिले के कोलड़िया गाँव में एक शिक्षक के घर एक नारियल का ऐसा पेड़ लगा हुआ है, जिसकी शाखाओं से ही उसकी सन्तानें जन्मने लगती हैं। पिछले वर्षों से इस पेड़ ने करीब 100 पौधों को जन्म दिया और सभी उस पेड़ के पत्तों के मूल स्थान से उगे हैं। जब पत्तों में अंकुर उग आते हैं, तो उन्हें जब पत्तों में अंकुर उग आते हैं, तो उन्हें तोड़कर जमीन में गाड़ देने से उससे एक स्वतंत्र पौधा निकल आता है। यदि अंकुर युक्त पत्तों को पेड़ से अलग न किया जाय, तो अंकुर नष्ट हो जाते हैं।
वृक्ष-वनस्पतियों में ऐसी अनेक प्रकार की विचित्रताएँ पायी जाती हैं, जिन्हें देखकर बुद्धि चकरा जाती है। गर्म प्रदेशों में पाया जाने वाला वृक्ष ‘समानी सनम ‘ वनस्पति जगत में अपने ढंग का वनस्पति जगत में अपने ढंग अनोखा वृक्ष है। वह रात्रि में बादल की तरह पानी बरसाता है। उस क्षेत्र के निवासी उसी से अपने जल की आवश्यकता की काफी हद तक पूर्ति कर लेते हैं। यह पेड़ दिनभर अपने डण्ठलों से हवा की नमी सोखता रहता है और अपना भण्डार भर लेता है। जैसे ही वातावरण की गर्मी शान्त होती है वह उस भण्डार को खाली करके उस क्षेत्र के प्राणियों की प्यास बुझाता है। सभी रात्रि की प्रतीक्षा में उसके इर्द-गिर्द जमा रहते हैं। वृक्ष प्राणवायु तो देते ही हैं, हमारा उगला विष प्राणवायु तो देते ही हैं, हमारा उगला विष भी सोखते हैं, पर बादलों की वृष्टि के अतिरिक्त वे स्वयं भी जल बरसा सकते हैं, उसका यह अपने में एक अनूठा उदाहरण है।
तिब्बत में एक अनोखी झील है-’ऊँरुत्सी’। इसका पानी बारह वर्ष तक खारा रहता है और बारह वर्ष के लिए मीठा हो जाता है। यह परिवर्तन-क्रम लम्बे काल से चला आ रहा है। इसी प्रकार इटली के टोरंटो क्षेत्र के समीप समुद्र में सफेद रंग के पानी का एक फुहारा फूटता है। इसका पानी मीठा है। खारे समुद्र में मीठे पानी का फुहारा फूटना प्रकृति की किस विचित्रता का परिणाम है, यह अब तक जाना नहीं जा सका है।
यह सभी अजूबे प्रकृति में ऐसे उदाहरणों के रूप में विद्यमान हैं, जिन्हें अपवाद भर मानकर मन को संतुष्ट कर लिया जाता है। कदाचित् यह स्वीकार लेने में मनुष्य के लिए अपमान जैसी बात नहीं होनी चाहिए कि वह अभी बहुत बौना है और बुद्धि इतनी ठिगनी कि रहस्य की ऊँचाइयों पर क्या कुछ पक-पनप रहा है, उसे देख-समझ पाने जितनी सामर्थ्य उसमें नहीं। समस्या का एकमात्र हल यही हो सकता है कि हम अपनी आध्यात्मिक ऊँचाई को बढ़ाएं, बौद्धिक ठिगनापन तभी दूर हो सकता है।