आइए! आत्म शक्ति द्वारा अपने अभावों की पूर्ति करें

August 1948

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आपको अपने जीवन में अनेक प्रकार की आवश्यकताएं अनुभव होती हैं, अनेक अभाव प्रतीत होते हैं और अनेक इच्छाएं अतृप्त दशा में अन्तःकरण में कोलाहल कर रही हैं। इस प्रकार का अशान्त एवं उद्विग्न जीवन जीने से क्या लाभ? विचार कीजिए कि इनमें कितनी इच्छाएं वास्तविक हैं और कितनी अवास्तविक? जो तृष्णाएं मोह ममता और भ्रम अज्ञान के कारण उठ खड़ी हुई हैं उनका विवेक द्वारा शयन कीजिए। क्योंकि इन अनियंत्रित वासनाओं की पूर्ति, तृप्ति और शान्ति संभव नहीं। एक को पूरा किया जायेगा कि दस नई उपज पड़ेंगीं।

जो आवश्यकताएं वास्तविक हैं। उनको प्राप्त करने के लिए अपने पुरुषार्थ को एकत्रित करके इसे उचित उपयोग कीजिए। पुरुष का पौरुष इतना शक्तिशाली तत्व है कि उसके द्वारा जीवन की सभी वास्तविक आवश्यकताएं आसानी से पूरी हो सकती हैं। इसमें से अधिकाँश का पौरुष सोया हुआ रहता है। क्योंकि उसे प्रेरणा देने वाली अग्नि आत्म शक्ति-मंद पड़ी रहती है। उस चिंगारी को जगाकर अपने शक्ति भण्डार को चैतन्य किया जा सकता है। यह सचेत पौरुष हमारी प्रत्येक सच्ची आवश्यकता को पूरी करने में पूर्णतया द्वारा समर्थ है। आइए, अभावग्रस्त चिन्तातुर स्थिति से छुटकारा पाने के लिए तृष्णाओं का विवेक द्वारा शमन करें और आवश्यकता को पूर्ण करने वाले पौरुष को जगाने के लिए आत्मशक्ति की चिंगारी को जगावें।

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