सुख, सिद्धि और समृद्धि प्राप्ति के कुछ नियम

August 1948

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(महात्मा गाँधी)

(1) अगर आप विवाहित हैं तो याद रखिए कि पत्नी आपकी साथिन, मित्र और सहकारिणी है, विषय-तृप्ति का एक साधन नहीं।

(2) आत्म-संयम ही मनुष्य के जीवन का नियम है। अतः संभोग उसी हालत में उचित कहा जा सकेगा जब दोनों ही के अन्दर उसकी इच्छा पैदा हो और वह भी तब, जब कि वह उन नियमों के अनुसार किया गया हो, जिन्हें कि पति-पत्नी दोनों ने भली प्रकार समझ कर बनाया हो।

(3) अगर आप अविवाहित हैं तो आपका अपने प्रति, समाज के प्रति और अपनी भावी जीवन-संगिनी के प्रति यह कर्तव्य है कि आप अपने को-अपने चरित्र को पवित्र बनाये रखें। अगर आपके अन्दर सच्चाई और वफादारी की ऐसी भावना पैदा हो गई हो, तो यह भावना एक दुर्भेद्य कवच बनकर अनेक प्रलोभनों से आपकी रक्षा कर सकेगी।

(4) हमारे हृदय के अन्दर छिपी हुई उस परमात्म शक्ति का हमें सदा स्मरण रखना चाहिए। चाहे हम उसे कभी देख न सकते हों, परन्तु हम अपनी अन्तरात्मा के अन्दर सदा यह अनुभव करते रहते हैं कि वह हमारे प्रत्येक बुरे विचार को भलीभाँति देख रही हैं यदि आप उस शक्ति का ध्यान करते रहें तो आप देखेंगे कि वह शक्ति हमेशा आपकी सहायता के लिए तैयार रहती है।

(5) संयमी जीवन के नियम, विलासी जीवन के नियमों से अवश्य ही भिन्न होंगे। इसलिए उचित है कि आपका मिलने-जुलने वाला समाज अच्छा हो, आप सात्विक साहित्य पढ़ें, आपके विनोद स्थल अच्छे वातावरण से परिपूर्ण हों और खान-पान में आप संयत हों। आपको हमेशा सत्-पुरुषों और सच्चरित्र लोगों की ही संगति करनी चाहिए। आपको दृढ़तापूर्वक उन पुस्तकों उपन्यासों और मासिक पत्रों को पढ़ना छोड़ देना चाहिए जिनके पढ़ने से आपकी कुवासनाओं को उत्तेजना मिले। आप हमेशा उन्हीं पुस्तकों को पढ़िए जिनसे आपके मनुष्यत्व की रक्षा तथा पुष्टि हो। आपको किसी एक अच्छी पुस्तक को अपना आधार और मार्ग प्रदर्शक बना लेना चाहिए।

(6) सिनेमा और नाटकों से दूर ही रहना चाहिए। मनोविनोद तो वह है जिससे हमारे चरित्र का पतन न होकर, उसके द्वारा वह एक अच्छे साँचे में ढल जाता हो। अतः आपको उन्हीं भजन मंडलियों में जाना चाहिए, जिनके भजनों का भाव और संगीत की ध्वनि आत्मा को ऊपर उठाती हो।

(7) आपको भोजन स्वाद-तृप्ति के लिए नहीं, बल्कि क्षुधा-तृप्ति के लिए करना चाहिए। विलासी पुरुष खाने के लिए जीता है किन्तु संयमी पुरुष जीवित रहने के लिए खाता है। अतः आपको सब तरह के उत्तेजक मसाले, शराब आदि नशीले पदार्थों से, जिनसे कि आदमी के अन्दर उत्तेजना पैदा होती है, परहेज करना चाहिए और मादक द्रव्य आदि से भी बिल्कुल बचना चाहिए जिनसे मस्तिष्क पर ऐसा कुप्रभाव पड़ता है कि भले-बुरे के पहचानने की शक्ति नष्ट हो जाती है। आपको अपने भोजन की मात्रा और समय भी निश्चित और नियमित कर लेना चाहिए जब आपको ऐसा मालूम पड़े कि आप विषय-वासनाओं के वशीभूत होते जा रहे हैं तो पृथ्वी पर सर टेककर भगवान के दरबार में सहायता के लिए पुकारिए। मेरे लिए तो ऐसे समय पर रामनाम ने अव्यर्थ दवा का काम दिया है।

(8) प्रतिदिन तड़के उठकर खुली हवा में, खूब तेजी के साथ घूमा कीजिए। रात को खाना खाने के बाद, सोने से पूर्व, टहलिए भी।

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