धनी है आप तो धन से, शिवालय हैं बना सकते। मगर हृदय धाम में शिव को, नहीं धन से बिठा सकते।। भले ही आप धन देकर , मँगाले मूर्ति माधव की। हृदय में आपके माधव, कभी धन से न आ सकते।।
(2) धन व्यय नित्य करके रामलीला कीजिए लेकिन- मनोहर भक्ति रघुवर की न धन से आप पा सकते।। हजारों यज्ञ और बलिदान धन से कर लिए तो क्या। न धन द्वारा कभी निर्वाण पद पर आप जा सकते।।
(3) सुगम है धन से राजा के यहाँ से पदवियाँ पाना। प्रजा में आप धन से मान रत्ती भर न पा सकते।। उठाकर बज्र धन का, शत्रु को जीता तो क्या जीता। क्षमा के शस्त्र से ही आप हैं रिपु को मिटा सकते।।
(4) नचा सकते हैं माना आप धन से अच्छों अच्छों को, मगर क्या काल को भी आप है धन से नचा सकते ? मिला है आपको जो धन दिया वह सब है ईश्वर ने। न उसको आप अपने स्वार्थ-साधन में लगा सकते।।
उचित यह है कि धन को कीजिए व्यय अच्छे कामों में। न मुट्ठी बाँधकर हैं आप इस धन को बचा सकते।।
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*समाप्त*