मनुष्य को ‘सच्चा मनुष्य’ बनाने का एक छोटा किन्तु महान प्रयत्न!

March 1944

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कर्मयोग गुरुकुल की संक्षिप्त विवरण पत्रिका

गत अंक में कर्मयोग गुरुकुल खुलने की सूचना छपी थी। अब उसकी रूप रेखा प्रकाशित की जा रही है। चैत्र सुदी 1 सं. 2001 वि. तद्नुसार ता. 25 मार्च सं. 44 से गुरुकुल खुल जायेगा। जो यह आज्ञा प्राप्त करने के इच्छुक हों स्वीकृति प्राप्त करने के लिए व्यवहार कर लें।

उद्देश्य - (1) मनुष्य वास्तविक अर्थ में “मनुष्य” बनकर इस जीवन में ही स्वर्ग का आनन्द प्राप्त करें। यही इस गुरुकुल का उद्देश्य है।

आधार ग्रन्थ - श्रीमद्भगवद्गीता।

प्रवेश - (2) 16 वर्ष से अधिक आयु के, निरोग, हिन्दी भाषा को अच्छी तरह जानने वाले, शिष्ट स्वभाव के छात्र ही प्रवेश पा सकेंगे। यहाँ पूर्ण रूप से अनुशासन में रहना पड़ेगा और तपस्वी जीवन बिताना पड़ेगा।

स्वीकृति - (3) शिक्षार्थी अपना शारीरिक, बौद्धिक, पारिवारिक तथा व्यवसायिक परिचय विस्तार पूर्वक लिख भेजें और यह भी लिखें कि वे किन तारीखों में मथुरा आ सकते हैं। बिना स्वीकृति के कोई सज्जन यहाँ न पधारे।

शिक्षाकाल -(4) नीचे 90 विषय दिये हुए हैं। इन विषयों की शिक्षाएँ यहाँ दी जायेंगी। साधारणतः इसके लिए एक मास का समय नियत है। जो लोग इससे कम या अधिक समय रहना चाहें, वे कारण लिखकर इसकी स्वीकृति प्राप्त करें।

शारीरिक शिक्षा - (1) रोगों से बचाव (2) स्वास्थ्य कायम रखना (2) दुर्बल अंगों की पुष्टि करना (4) जीवन शक्ति बढ़ाना (5) बुरी आदतों से छुटकारा (6) सात्विक आहार विहार (7) परिश्रम में रुचि (8) शरीर को सहनशील बनाना (9) खिलता हुआ चेहरा (10) सौंदर्य की वृद्धि (11) तेजस्विता (12) नियमितता (13) इन्द्रिय भोगों की मर्यादा (14) दीर्घ जीवन (15) रोगी होने पर स्वयं चिकित्सा।

व्यवहारिक शिक्षा - अपने आप के साथ सद्व्यवहार (2) शिष्टाचार और सभ्यता (3) बड़ों का सम्मान (4) छोटों से स्नेह (5) बराबर वालों से मैत्री (6) दांपत्य जीवन का स्वर्ग (7) अपनी साख जमाना (8) नौकर और मजदूरों से काम लेना (9) रूठे को मनाना (10) असहमत को सहमत करना (11) महापुरुषों से संपर्क (12) दुष्टों का दमन (13) कूट नीति की आवश्यकता (14) मूर्खों की उपेक्षा (15) ठहरो और प्रतीक्षा करो।

सामाजिक शिक्षा - (1) मनुष्य के अधिकार (2) नागरिकता का उत्तरदायित्व (3) दूसरों के प्रति अपना कर्त्तव्य (4) विवाह की समस्या (5) मजहबों और फिरकों का रहस्य (6) रीति रिवाजों की विवेचना (7) समाज सुधार की आवश्यकता (8) परमतावलम्बियों का आदर (9) जिओ और जीने दो (10) करो या मरो (11) गलती को सुधारना (12) अनीति का विरोध (13) दलित पीड़ित और पतितों के प्रति अपना कर्त्तव्य (14) सेवा मार्ग (15) देशभक्ति।

आर्थिक शिक्षा - (1) धन की उपयोगिता (2) दरिद्रता का पाप (3) धन क्या है 4) कितना धन चाहिए। (5) धन की आकाँक्षा (6) धन उपार्जन के सिद्धान्त (7) धनवान बनने के उपाय (8) धन की सुरक्षा (9) धन का सदुपयोग (10) धन का दुरुपयोग (11) धन के कारण उत्पन्न होने वाले गुण दोषों की जानकारी (12) धनी की जिम्मेदारी (13) निर्धन का कर्त्तव्य (14) धन प्राप्ति के अनुचित मार्ग (15) धन का उन्माद और उसके परिणाम।

मानसिक शिक्षा - (1) अज्ञान से परिचित रहना (2) विद्या से प्रेम (3) दुर्भावपूर्ण कल्पनाएं (4) सद्भाव पूर्ण कल्पनाएं (5) सत्य की आराधना (6) रुचि और अरुचि (7) मानसिक कमजोरियाँ 8) विचारों की अद्भुत शक्ति (9) वर्तमान की समस्याएं (10) उत्साह लगन, दृढ़ता और तत्परता (11) धैर्य साहस और विवेक (12) मन को वश में करना (13) मनोबल की वृद्धि (14) एकाग्रता और दिव्य दृष्टि (15) मनोरंजन।

आध्यात्मिक शिक्षा - (1) प्रकाश की ओर यात्रा (2) जीवन का उद्देश्य और उसकी पूर्ति (3) स्वार्थ और परमार्थ (4) हँसी खुशी का जीवन (5) दैवी संपदाएँ- सद्गुण (6) आत्मसुधार (7) यश प्रतिष्ठा और नेतृत्व (8) आत्मोन्नति का अर्थ (9) पुण्य और पाप की पहचान (10) आत्म स्वरूप का ज्ञान (11) ईश्वर और जीव का संबंध (12) गीतोक्त निष्काम कर्मयोग (13) गृहस्थ में संन्यास (14) शान्ति की गोद में (15) स्वर्ग, मुक्ति और परमपद।

शिक्षा व्यवस्था - उपरोक्त शिक्षा इतनी महान है कि शिक्षार्थी के अन्तःकरण में शिक्षक अपना अन्तःकरण पिरोकर ही पूरा कर सकता है। ऐसे शिक्षकों की अभी भरी कमी है। कर्मयोग गुरुकुल की सारी शिक्षा आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा ही संयोजित होगी। एक शिक्षक एक समय में थोड़े ही शिक्षार्थियों को पूरी जिम्मेदारी के साथ शिक्षा दे सकता है। इसलिए एक समय में पाँच से लेकर दस तक ही शिक्षार्थी लिये जावेंगे। अधिक नहीं। शिक्षा के लिए सैकड़ों आवेदन आने की आशा है, क्रमानुसार यह निर्णय होगा कि कौन महानुभाव कब पधारें।

शिक्षा प्राप्ति- पढ़ने के लिए पुस्तकें गुरुकुल के पुस्तकालय में मौजूद हैं, उन्हें पढ़ने के लिए प्राप्त किया जा सकता है। पठन, भाषण, मनन, लेखन, चिन्तन और विचार विनिमय द्वारा शिक्षा प्राप्त की जायेगी। समय समय पर अन्य प्रतिष्ठित विद्वानों को बुलाकर भी भाषण कराये जायेंगे। प्रार्थना, वायुसेवन, व्यायाम, कथा, सत्संग, विचार विनिमय, नित्य के कार्य होंगे। ब्रज के तीर्थ स्थानों की एक यात्रा भी हुआ करेगी। वेदारंभ संस्कार के साथ शिक्षा आरंभ होगी और संभावर्तन संस्कार के साथ समाप्त होगी। शिक्षार्थी चाहे किसी भी आयु या स्थिति का हो उसे एक ब्रह्मचारी की भाँति ही रहना होगा।

फीस -गुरुकुल में शिक्षार्थी से किसी प्रकार की फीस नहीं ली जायेगी।

आहार विहार की व्यवस्था - भोजन का खर्च स्वयं उठाना होगा। रसोइया भोजन बनावेगा। खर्च का हिसाब शिक्षार्थियों की चुनी हुई कमेटी रखेगी। हर एक के हिस्से में जितना पड़ेगा, उतना लिया जायेगा। अनुमानतः 12 से 15 के बीच में भोजन खर्च पड़ेगा। ऋतु के अनुसार कपड़े व बिस्तर तथा थाली, लोटा, कटोरी साथ लाना चाहिए। सोने के लिए तख्त गुरुकुल में होंगे। नियत दिनचर्या के अनुसार सारा कार्यक्रम रखना होगा।

गारंटी - यहाँ शिक्षा प्राप्त हुए छात्रों के स्वभाव, विचार, चरित्र और कार्यों में इतना परिवर्तन हो जाने की गारंटी की जा सकती है कि अपने संबंध में उन्हें स्वयं आत्मसंतोष रहेगा और दूसरे लोग उनकी सुजनता को सराहेंगे। स्वास्थ्य, वैभव, प्रतिष्ठा, आदर, नेतृत्व, यश, उन्नति तथा आत्मशान्ति का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव होगा।

आडम्बर नहीं - किराये के एक साधारण से मकान में अखण्ड-ज्योति कार्यालय और कर्मयोग गुरुकुल है। दस व्यक्तियों के रहने के लिए स्थान का, चारपाइयों का, पढ़ने के लिए डेस्कों का प्रबंध है। इतना सा - छोटा सा -यह बाह्य रूप ही देखने को मिलेगा! ज्ञान, अनुभव और आत्मसाधना के फलस्वरूप जो वस्तुएं मिलनी चाहिए वह यहाँ है। पैसा हमारे पास नहीं है इसलिए वह विशाल विस्तार भी यहाँ नहीं है जो पैसे के द्वारा ही संभव है।

व्यवस्थापक- ‘अखण्ड ज्योति कार्यालय मथुरा।

(घीया मंडी रोड, किशोरी रमन गर्ल्स स्कूल के सामने)


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