प्रसन्न रहना ही उत्तम धर्म तथा कर्त्तव्य है। यदि हम स्वयं प्रसन्न रहते हैं तो अत्यन्त परोपकारी हैं।
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हँसी वह तेल है जिसके बिना जीवन रूपी यन्त्र बिगड़ जाता है।
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मनुष्य जितना अपनी आत्मा की तरफ ध्यान नहीं देता उतना ही दूसरे की निन्दा में चित्त लगाता है।
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अज्ञान मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है।
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जिसके पास किसी का कर्ज नहीं वह बड़ा मालदार है।