साँस लेने की विधि-व्यवस्था

March 1944

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हमारे शरीर को नित्य जिन पदार्थों की आवश्यकता होती है उनका बहुत बड़ा भाग वायु द्वारा पूरा होता है। अन्न जल द्वारा ही सब वस्तुएं प्राप्त हो जाती हों सो बात नहीं है, यद्यपि शरीर की आवश्यक वस्तुओं का एक बड़ा भाग अन्दर पहुँचता है पर सबसे बड़े भाग की पूर्ति नासिका के मार्ग से ही होती है। हिलने जुलने की प्रतिक्रिया को ही वायु नहीं समझना चाहिए। वास्तव में वायु एक लोक है जिसमें सृष्टि के सम्पूर्ण दृश्य पदार्थ सूक्ष्म रूप से भरे रहते हैं और भ्रमण करते रहते हैं। पौधे बढ़ते हैं और भूमि में वह पदार्थ न होने पर भी अपने उपयोगी तत्व स्वयमेव बढ़ाते हैं। एक खेत में कई वर्ष तक लगातार ईख बोई जाए तो उस खेत में इतनी शक्कर पैदा हो जाएगी जितनी कि इस खेत के परमाणुओं में कदापि नहीं पाई जा सकती। निश्चय ही ईख के पौधे शक्कर की इतनी बड़ी मात्रा जमीन से नहीं वरन् हवा से खींचते हैं। हम आँखों से भले ही न देख सकें पर भोजन की बहुत बड़ी मात्रा वायु से लेते हैं।

एक मनुष्य को यदि बढ़िया बढ़िया भोजन कराया जाए, किन्तु खराब हवा में रखा जाए तो वह दुर्बल और बीमार हो जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि वायु द्वारा जो खुराक मिलनी चाहिए थी वह उसे नहीं मिली। हममें से हर एक व्यक्ति जो स्वस्थ रहने का इच्छुक है उसे चाहिए कि स्वच्छ वायु सेवन करने का पूरा पूरा ध्यान रखें। हमारा शरीर वायु में से निरंतर ऐसे पदार्थ खींचता रहता है जो पाचन शक्ति को ठीक रखें और स्फूर्ति प्रदान करें। यदि आप स्वच्छ वायु सेवन करने के संबंध में लापरवाही करते हैं तो स्पष्ट ही यह पाचन शक्ति और स्फूर्ति के संबंध में लापरवाही होगी।

जहाँ आप रहें, काम करें और सोवें वह स्थान खुले हुए होने चाहिए। आर पार हवा जाने के लिए खिड़की और दरवाजों की समुचित व्यवस्था हो, कूड़ा कचरा, गंदगी और हानिकर वस्तुओं का आस पास जमाव न होना चाहिए जिनके संसर्ग से हवा विषैली हो जाए और स्वास्थ्य पर विषैला प्रभाव पड़े।

गहरी साँस लेना इसलिए आवश्यक है कि हवा शरीर के छोटे छोटे हिस्सों तक में पहुँच जाए, फेफड़ों को पूरी कसरत करनी पड़े और रक्त का दौरा ठीक रहे। जो लोग गरदन झुकाये आलस में पड़े रहते हैं और अधूरी एवं जल्दी जल्दी साँस लेते हैं उनके श्वास यन्त्र का कुछ भाग तो आवश्यकता से अधिक परिश्रम करता है, किन्तु अधिकाँश अंगों में वायु का पूरा प्रवेश नहीं हो पाता और वे उस लाभ से वंचित रह जाते हैं। नाड़ियों में उत्पन्न हुए विष का अच्छी तरह शोधन नहीं हो पाता और जहाँ तहाँ बीमारियों के केन्द्र जमा होने लगते हैं।

यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि सदैव मेरुदंड सीधा रहे, सीना उठा हुआ हो और गरदन ऊँची रहे। क्योंकि झुक कर बैठने और चलने से अगले भाग पीछे की ओर धँसकते हैं और पिछले भाग आगे की ओर तनते हैं इससे पेट और फेफड़ों पर एक प्रकार का दबाव पड़ता है और उस दबाव के कारण श्वास प्रश्वास क्रिया में बाधा पहुँचती है। इसलिए सदैव सीधे बैठने और सीधे खड़े होने एवं चलने फिरने का सदैव ध्यान रखना चाहिए। वायु को समस्त शरीर में निर्बाध रूप से फैलने देने के लिए यह एक बहुत ही आवश्यक बात है।

मुँह को बंद रखिए और नाक से हवा लीजिए। परमात्मा ने साँस लेने के लिए ही नासिका बनाई है। उसमें बालों की छलनी लगी हुई है जो गुबार को छानती है। इनके बाद फेफड़े तक पहुँचने में हवा को जो मंजिल तय करनी पड़ती है उसमें उसका तापमान ऐसा हो जाता है जिससे फेफड़ों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे। मुँह में ऐसी सुविधा नहीं है, मुंह द्वारा ली हुई हवा एक साथ बहुत अधिक, बिना छनी और सर्द गर्म होती है जिससे फेफड़े पर आघात पहुँचता है और हानि की संभावना रहती है।

शरीर को जिन वस्तुओं की आवश्यकता है उनका चार बटा पाँच भाग वायु द्वारा प्राप्त होता है इसलिए हर व्यक्ति को स्वास्थ्यप्रद वायु सेवन के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। प्रातःकाल वायु सेवन के लिए जरा जल्दी-जल्दी कदम उठाते हुए कई मील टहलने जाना एक अच्छा व्यायाम है। जिसका असर चेहरे पर तेज के रूप में बहुत जल्द देखा जा सकता है।


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