गायक से

March 1944

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(ले. - श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, टेढ़ा - उन्नाव)

गायक, ऐसा राग सुना दे!

युग-युग के नीरस-मानस में, लहरादे जो अमृत-धारा!!

युग-युग से सोये मानव के, स्वप्नों की तोड़े जो कारा,

जीवन-सरिता-तटपर संचित, कल्मष में जो आग लगादे,

गायक, ऐसा राग सुना दे!

पलकों के मादक-कम्पन में, गूँथ रहा भावों की लड़ियाँ!!

उलझा नागिन-सी अलकों में, खोता क्यों ये स्वर्णिम घड़ियाँ,

छोड़ यामिनी का अंचल तू, मधुर-उषा का ‘दीप’ - जलादे,

गायक, ऐसा राग सुना दे!

स्वार्थ-साधना-रत मानव की, नित्य पिपासा बढ़ती जाती!!

क्षण-क्षण महाद्वेष की ज्वाला, अपना भीषण रूप दिखाती,

सुरभित जीवन का कण-कण हो, मधुमय सुन्दर सुमन खिलादे,

गायक, ऐसा राग सुना दे!

बुझी हुई वह ज्योति जगे फिर, दीप्त तमोमय अन्तस्तल हो!!

अविनश्वर उल्लास-विभा से, विहसित जल-थल-अम्बरतल हो,

इस वीणा की स्वर-लहरी से, एक नया संसार बसा दे,

गायक ऐसा राग सुना दे!


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