(ले. - श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, टेढ़ा - उन्नाव)
गायक, ऐसा राग सुना दे!
युग-युग के नीरस-मानस में, लहरादे जो अमृत-धारा!!
युग-युग से सोये मानव के, स्वप्नों की तोड़े जो कारा,
जीवन-सरिता-तटपर संचित, कल्मष में जो आग लगादे,
गायक, ऐसा राग सुना दे!
पलकों के मादक-कम्पन में, गूँथ रहा भावों की लड़ियाँ!!
उलझा नागिन-सी अलकों में, खोता क्यों ये स्वर्णिम घड़ियाँ,
छोड़ यामिनी का अंचल तू, मधुर-उषा का ‘दीप’ - जलादे,
गायक, ऐसा राग सुना दे!
स्वार्थ-साधना-रत मानव की, नित्य पिपासा बढ़ती जाती!!
क्षण-क्षण महाद्वेष की ज्वाला, अपना भीषण रूप दिखाती,
सुरभित जीवन का कण-कण हो, मधुमय सुन्दर सुमन खिलादे,
गायक, ऐसा राग सुना दे!
बुझी हुई वह ज्योति जगे फिर, दीप्त तमोमय अन्तस्तल हो!!
अविनश्वर उल्लास-विभा से, विहसित जल-थल-अम्बरतल हो,
इस वीणा की स्वर-लहरी से, एक नया संसार बसा दे,
गायक ऐसा राग सुना दे!