योगावस्था सदा नहीं रहती

March 1944

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(महात्मा योगानंद जी महाराज)

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से अपने पूर्ण वक्ता होने का पूरा परिचय देकर भी कहा था कि शरीर धारी अवतारी पुरुष भी सर्वदा काल पूर्ण वक्ता भाव में नहीं रहते, जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और महाराज युधिष्ठिर को राज्याभिषेक हो गया तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहने लगे कि कहो अर्जुन और कोई बात बाकी है? तब अर्जुन ने कहा कि भगवान् आपके अनुग्रह से हम युद्ध जय कर सके हैं और हमारा राज्य हमें पूर्ववत् प्राप्त हो गया है, यह तो व्यवहार है, परन्तु हे केशव! आपने कृपा करके युद्ध क्षेत्र में मुझे गीता का ज्ञान कहा था वह चित्त की व्यग्रता के कारण मेरा सब नष्ट हो गया है, अतएव कृपया वह पुनः कहिए, तब श्री कृष्ण भगवान बोले कि हे अर्जुन! तुमने बड़ी भूल की जो उस ज्ञान को अच्छी तरह याद न रख सके, वह परम सनातन गुहा ज्ञान मैंने उस समय योगाबलम्वन करके तुम को दिया था, ऐसा उस समय कहा हुआ दिव्य ज्ञान अब मैं नहीं कह सकूँगा, वह आज स्मरण मुझे नहीं है इसलिए वह सब तो कहा नहीं जा सकता तथा अब भी जो मैं कहूँगा उससे भी तुम्हारा मंगल होगा। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रति अनुगीता कही है।

इसलिए इससे तुम को समझ लेना चाहिए कि अवतारी पुरुष भी अष्ट प्रहर योग में संलग्न नहीं रहते। इसी तरह तुम भी सब काल ब्रह्म में निमग्न नहीं हो सकते। जब तक शरीर के साथ तुम्हारा संबंध है तब तक आवश्यकतानुसार सभी कर्म करने पड़ेंगे।


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